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अपभ्रंश भारती 13-14
31 वीरता के अवतार लक्ष्मण जिन्हें कवि वासुएव, कुमार, जणद्दणु, महुमहणु, पुरिसोत्तम, हरि, केसव, गोविन्द, श्रीवत्स, नारायण, दामोदर, कण्ह, विण्हु आदि नाम-संज्ञाएँ देता है - वन में अनेक सुन्दरियों से परिणय करते हैं और उनके साथ रमण भी'। अन्य राम-कथा-ग्रन्थों के लक्ष्मण से यह लक्ष्मण नाम एवं चरित्र दोनों दृष्टियों से नितान्त भिन्न है। अन्य रामकथाओं में विष्णु के अवतार राम हैं अत: वासुदेव, जनार्दन, हरि, केशव, नारायण, विष्णु, पुरुषोत्तम ये सारी संज्ञाएँ (संस्कृत एवं हिन्दी रामकाव्यों में) उनके लिए प्रयुक्त हुई हैं। और, चारित्रिक दृष्टि से वाल्मीकि रामायण में इन्द्रजीत का वध तो साक्षात् राम द्वारा सम्भव नहीं क्योंकि बारह वर्षों तक आहार-निद्रा-त्यागी और ब्रह्मचर्यव्रती के हाथों ही उसका वध सम्भव है, अतः केवल लक्ष्मण ही यह स्तुत्य कर्म कर सकते हैं, ब्रह्मचर्य के कारण, पर इस काव्य में वे सर्वथा भिन्न हैं। क्षेमंजलि राजा अरिदमन को परास्त कर जितपद्मा के मान-अहंकार को चूर करनेवाले लक्ष्मण उससे भी विवाह करते हैं। अरिदमन द्वारा समरांगण में छोड़ी गयी धक्-धक् कर दौड़ती शक्तियों को वे अपने दायें-बायें हाथ, काँख और दाँतों से रोक लेते हैं। वे कामावतार होने के साथ ही महान् वीर भी हैं।"
कुलभूषण और देशभूषण, जो कालान्तर में तपश्चरण के माध्यम से श्रेष्ठ मुनि बनते हैं, काम के प्रभाव में आकर अज्ञानवश अपनी बहन कमलोत्सवा की ओर आकृष्ट होते हैं किन्तु उसका परिचय जानकर आत्मग्लानि में भरे हुए इन्द्रियों की विषयगम्यता एवं मन की दुर्बलताक्षुद्रता को समझ विवाह और पापमय राज्य के भोग से निवृत्ति ले लेते हैं।"
सीता-सौन्दर्य पर लुब्ध रावण जैसे श्रेष्ठ जिनभक्त को अवलोकिनी विद्या पाप-मार्ग से निवृत्त करने हेतु सावधान करती है
__लइ-लइ जइ जिण-सासण, छण्डहि ॥ 38,8.3 ॥
- यदि जिनशासन छोड़ना चाहते हो तो इसे ले लो। . जटायु के ऊपर काम-मोहित रावण के क्रोध का मूल कारण है उसका अभीष्ट-सिद्धि के मार्ग में बाधक बनना। फिर भी,
अण्णु वि मइँ णिय - बड़ पालेव्वउ।
मण्डएँ पर-कलत्तु ण लएव्वउ ॥ 38,19.4।। - और मुझे अपने व्रत का पालन करना चाहिए। बलपूर्वक दूसरे की स्त्री को ग्रहण नहीं करना चाहिए- यह संकल्प दोहराता हुआ रावण अपहृत सीता को उपवन में शिंशपा वृक्ष के नीचे बैठा देता है।
‘पउमचरिउ' में राम-रावण के युद्ध का मुख्य कारण है सीता, धर्म-हानि नहीं। (मानस के राम धर्म-रक्षण के लिए धनुष उठाते हैं) राम-पक्ष के योद्धाओं का सन्देश ले रावण-दरबार में पहुँचा अंगद उसे सन्धि-हेतु प्रेरित करता हुआ मंत्रणा देता है -