Book Title: Apbhramsa Bharti 2001 13 14
Author(s): Kamalchand Sogani, Gyanchandra Khinduka
Publisher: Apbhramsa Sahitya Academy

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Page 107
________________ 94 अपभ्रंश भारती 13-14 कम है। ऐसा प्रतीत होता है कि उस समय स्वास्थ्य की दृष्टि से हितकर शृंगार प्रसाधन को ही अधिक महत्त्व दिया जाता था इस कारण आँख में काजल और ओठों की लालिमा का ही विशेष प्रचलन था। ‘राउलवेल' में इन दो शृंगार प्रसाधनों पर अधिक बल दिया गया है और उल्लेख किया गया है - काजल - आँखहिं काजलु तरलउ दीजउ । आछउ तुछउ फूलु + (ईज) इ॥ ऑखिहिं र तु रूरउ काजलु दीनउ कइसउ॥ जणु चाखुहु करइं भायइ कियउ-णिसउ। तम्बोलें - ओठों को रंजित करने के लिए तम्बोलें का प्रयोग किया गया है - अह (रु) तंबोले मणु-मणु रातउ॥ सोह देह कवि आन (आतउ)॥ ‘राउलवेल' में वर्णित इन विभिन्न नायिकाओं के वस्त्राभूषणों और शृंगार प्रसाधनों से यह स्पष्ट हो जाता है कि उस समय आभूषणों को विशेष महत्त्व दिया जाता था। कवि ने नायिकाओं का वर्णन करते समय प्रयत्न किया है कि कुछ यथार्थ और चमत्कार लाने के लिए उस क्षेत्र विशेष की नायिका के वस्त्राभूषण वर्णन में उस क्षेत्र की भाषा का प्रयोग हो। 1. 2. भारतीय विद्या, भाग 14, अंक 30, पृष्ठ 130-146 राउरवेल, हिन्दी अनुशीलन, डॉ. माताप्रसाद गुप्त, डॉ. धीरेन्द्र वर्मा अभिनन्दनांक, 1960 राउलवेल, सम्पादक - डॉ. कैलाशचन्द भाटिया, तक्षशिला प्रकाशन, नई दिल्ली, 1983 ई.। लेख में दिये गये सभी उद्धरण उक्त पुस्तक से लिये गये हैं। डॉ. कैलाशचन्द्र भाटिया- राउलवेल की भाषा, भारतीय साहित्य, अक्टूबर 1961 (वर्ष 6 अंक 4) आगरा विश्वविद्यालय, आगरा, पृष्ठ संख्या 101 से 121 शोध और स्वाध्याय, डॉ. हरिवल्लभ भायानी, हिन्दी साहित्य अकादमी, गाँधी नगर, गुजरात, 1996 'नन्दन' मैरिस रोड, अलीगढ़

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