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अपभ्रंश भारती 13-14 प्राचीन एवं मध्यकालीन साहित्य में इस नगरी के अनेक नाम मिलते हैं। यथाअयोध्या, साकेत, विनीता, प्रथमपुरी, इक्ष्वाकुभूमि, कोशला, कोशलपुरी आदि।' यदि देखा जाए तो यह नगरी हिन्दू, जैन, बौद्ध आदि सभी का सांस्कृतिक केन्द्र एवं धर्मस्थली रही है। उन सभी के धर्मायतन यहाँ पर हैं। यह जैनियों के तो कई तीर्थंकरों की जन्मभूमि है और जैन संस्कृति की एक प्रमुख प्रतीक है।
___अथर्ववेद, वाल्मीकि रामायण, रघुवंश आदि अनेक महान् ग्रन्थों में इस नगरी के बड़े भव्य वर्णन प्राप्त होते हैं। इस प्रकार संस्कृत वाङ्मय में अयोध्या की जो महिमा है, वही प्राकृत एवं अपभ्रंश भाषाओं के साहित्य में सुलभ है। एक प्रकार से वास्तविकता तो यह है कि इस पावन महानगरी के जैसे सुन्दर एवं भक्तिपूर्ण वर्णन जैन-साहित्य में मिलते हैं, वैसे अन्यत्र दुर्लभ हैं, क्योंकि जैन मतावलम्बियों के अनुसार ऋषभदेव जी आदि पाँच तीर्थंकरों की जन्म-स्थली है और उनके तीर्थंकरों में से 22 इक्ष्वाकुवंशी थे। अयोध्या को ही इक्ष्वाकुवंशियों की राजधानी कहलाने का गौरव प्राप्त है। यही कारण है कि अन्य नगरियों की अपेक्षा अयोध्या को जैनों ने अधिक महत्त्व दिया है -
नागपुरं साएया सावत्थी तह य होइ कोसम्बी। पोयणपुर सीहपुरं सेलपुरं चेव कोसम्बी ।। पुणरवि पोयणपुरं इमाणि नयराणि वासुदेवाण ।
आसी कमेण परभवे सुरपुर सरि साई सव्वाइं॥ अर्थात् नौ वासुदेवों की सात नगरियाँ हैं, जिनका क्रम से उल्लेख हुआ है। ये सभी नगर . स्वर्गलोक के सदृश माने गए हैं। आचार्य यतिवृषभ ने तिलोयपण्णत्ति (अ. 4, गाथा 526, 27, 29, 30 व 39) में 'जादो हु अवज्झाए उसहो' आदि गाथाओं द्वारा सूचित किया है कि अयोध्या नगरी में आदिनाथ ऋषभदेव का जन्म हुआ था। इसी प्रकार साकेत में अजितनाथ कासाकेदे अजिय जिणो, अभिनन्दननाथ का- साकेदेणंदणो जायो, सुमतिनाथ का- सुमई साकेद पुरम्मि और अनन्तनाथ का- अणंतो साकेद पुरे जायो जन्म हुआ था। विमलसूरि ने अपने पउमचरिउ में साकेतपुरी का उल्लेख करते हुए लिखा है -
साएअपुरवरीए एगन्ते नाभि-नन्दणो भयवं।
चिट्ठइ सुसंघ सहिओ ताव य भरहो समणुपत्तो॥ (4.68) अर्थात् साकेत नाम की श्रेष्ठ नगरी के एकान्त में महाराज नाभि के सुपुत्र (भगवान्) ऋषभ अपने संघ के साथ रहे तब भरत वहाँ आये। यदि देखा जाए तो साकेत की अति प्राचीन परम्परा प्राकृत वाङ्मय में सुलभ है। विमलसूरि, आचार्य जिनसेन आदि ने इस नगरी के बड़े भव्य वर्णन किए हैं। 'चउपन्नमहा पुरिस चरियं' में अयोध्या का वर्णन दृष्टव्य है -