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अपभ्रंश भारती 13-14 यात्रा अधूरी रह गई है, इस ओर संकेत है। इस नगरी का मोहक वर्णन करते हुए महाकवि स्वयंभू ने लिखा है -
धूवन्त-धवल-धयवड-पउरु ।
पिए पेक्खु अउज्झाउरि णयरु ॥ 78.20.8 लङ्का से लौटते हुए विमान पर से सीता को सम्बोधित कर श्रीराम कहते हैं कि- 'हे प्रिये ! अयोध्या नगर को देखो, जिसमें प्रचुर धवल पताकाएँ फहरा रही हैं। यहाँ राम के स्वागत हेतु लजाई हुई अयोध्या का वर्णन है।
लवणासुर को मारने के लिए शत्रुघ्न की यात्रा के वर्णन में अयोध्या का नाम आया
सामन्तहं लक्खें परियरिउ।
सत्तुहणु अउज्झहे णीसरिउ॥ 80.5.5 अर्थात् एक लाख सामन्तों से घिरे हुए शत्रुघ्न अयोध्या से निकले। वैसे तो स्वयभू रामायण में अयोध्या का प्रभूत वर्णन है और उन सभी का उल्लेख इस छोटे से लेख में किया जाना सम्भव भी नहीं है। अत: उनमें से एक-दो का उल्लेख और किया जा रहा है -
तहिं जे अउज्झहिं वहवे कालें। उच्छण्णे णरवर-तरु-जालें। विमलेक्खुक्क-वंस उप्पण्णउ।
धरणीधरु सुरूव-संपण्णउ॥ 5.1.1-2 अर्थात् उसी अयोध्या में बहुत समय के पश्चात् श्रेष्ठ पुरुषरूपी वृक्ष-समूह जब उच्छिन्न हुआ तब निर्मल इक्ष्वाकु वंश में सौन्दर्य-सम्पन्न एक राजा उत्पन्न हुआ। आगे उसी राजा की वंश-परम्परा का उल्लेख है -
सुणु अक्खमि रहुवंस-पहाणउ। दसरहु अत्थि अउज्झहें राणउ॥ तासु पुत्त होसन्ति धुरन्धर ।
वासुएव-बलएव धणुद्धर ॥ 21.1.2-3 अर्थात् रघुवंश में प्रधान दशरथ अयोध्या के राजा हैं, उनके धुरन्धर धनुर्धर पुत्र वासुदेव एवं बलदेव होंगे।
इस प्रकार देखा जाए तो अयोध्या नगरी अत्यन्त प्राचीनकाल से पुराणों में वर्णित रही