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अपभ्रंश भारती 13-14
43 विमान में उत्पन्न होती है। हनुमान् तथा लवण-अंकुश भी संसार की क्षण-भंगुरता, अनित्यता से उत्पन्न वैराग्य के कारण क्रमश: धर्मरत्न चारणऋषि एवं अमृतसर महामुनि के समीप जा दीक्षा ले लेते हैं। हनुमान के साथ सात सौ पचास विद्याधर, सुग्रीव का पुत्र सुपद्म, खर की बेटी अनंगकुसुम, नल की पुत्री श्रीमालिनी, लंकासुन्दरी तथा अन्य आठ हज़ार मनोहर स्त्रियाँ दीक्षा लेती हैं। हनुमान् के माता-पिता पवन और अंजना भी पुत्र-शोक से व्याकुल हो प्रव्रजित होते हैं। हनुमान् कठिन जप-तप कर केवलज्ञान प्राप्तकर वहाँ पहुँचते हैं'जेत्थु स य म्भु देउ त हिं पत्तउ' (जहाँ स्वयं स्वयंभूदेव थे)।
शिव, शम्भु, जिनेश्वर, देव-देव महेश्वर, जिन, जिनेन्द्र, कालंजय, शंकर, स्थाणु, हिरण्यगर्भ, तीर्थंकर, विधु, स्वयंभू, भरत, अरुह, अरहन्त, जयप्रभ, सूरि, केवली, रुद्र, विष्णु, हर, जगद्गुरु, निरपेक्ष परम्पर, परमाणु परम्पर, अगुरु, अलघु, निरंजन, निष्कल, निरवयव
और निर्मल आदि नामों से देवताओं, नागों और मनुष्यों द्वारा स्तुत्य ऋषभनाथ का स्वयं इन्द्र महिमा-गायन करते हैं।
लक्ष्मण की मृत्यु से क्षुब्ध हुए मोहासक्त राम माहेन्द्र स्वर्ग में उत्पन्न जटायु एवं कृतान्त देव के प्रयास से 'बोधि' प्राप्त करते हैं और लवण के पुत्र को राजपट्ट बाँधकर सुव्रत नामक चारणऋषि के पास जाकर दीक्षा ग्रहण कर लेते हैं। राम के संन्यास लेते ही शत्रुघ्न, विभीषण, नल, नील, सुग्रीव, अंगद, विराधित आदि सोलह हज़ार राजा धर्म-दीक्षा ले लेते हैं और रामलक्ष्मण की माताएँ भी सत्ताईस हज़ार स्त्रियों के साथ दीक्षा ग्रहण करती हैं। राम बारह प्रकार का कठोर तप अंगीकारकर, परीषह सहनकर, गुप्तियों का पालन करते हुए पहाड़ की चोटी पर जा ध्यानलीन होते हैं। रात्रि में उन्हें अवधि-ज्ञान प्राप्त होता है। कोटिशिला पर ध्यानलीन अवस्था में उन्हें माघ माह के शुक्लपक्ष में बारहवीं-रात्रि के चतुर्थ प्रहर में चार घातिया कर्मों का विनाश होने पर - ‘समुज्जलु परम-णाणु'- ‘समुज्ज्व ल परम (केवल) ज्ञान' उत्पन्न होता है; और'खणे केवल चक्खुहें जाउ सयलु'। चारों निकायों के देव, इन्द्र आदि अपने समस्त वैभव के साथ वहाँ आकर केवलज्ञान-उत्पत्ति का भक्ति-भाव से अनिंद्य पूजन करते हैं।"
क्रोध विनाश का मूल कारण है। सीतेन्द्र के माध्यम से कवि स्वयंभूदेव उपशम का आश्रय लेने की मंत्रणा देते हैं -
कोह मूलु सव्वहुँ वि अणत्थहुँ। कोह मूलु संसारावत्थहुँ ॥ 89.10.1 ।। - क्रोध ही सब अनर्थों का मूल है, संसार-अवस्था का मूल क्रोध ही है।
धर्म-भावना के कारण सीतेन्द्र कालान्तर में अच्युत स्वर्ग को प्राप्त होता है। स्वयं राम भी आदिनाथ भगवान् के निकट चले जाते हैं अर्थात् मोक्ष प्राप्त करते हैंगउ रहुवइ कइहि मि दिवसेंहिँ तिहुअण-मङ्गल गारोहों। अजरामर-पुर-परिपालहों पासु स य म्भु-भडाराहौँ ।।90.12.78 ।।