Book Title: Apbhramsa Bharti 2001 13 14
Author(s): Kamalchand Sogani, Gyanchandra Khinduka
Publisher: Apbhramsa Sahitya Academy

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Page 70
________________ अपभ्रंश भारती 13-14 57 इस पर सीता ने कहा 'बिना पति के जानेवाली कुलपत्नी पर भी लोग कलंक लगा देते हैं। पुरुषों के चित्त जहर से भरे होते हैं। कलंकरहित होने पर भी कलंक दिखाने लगते हैं। ' " राम के सम्मुख सीता स्वाभिमान - शील की रक्षा में सदैव सावधान व जागरूक रहनेवाली सीता के इस महान शील का उनके पति राम भी सम्मान करने के स्थान पर जब यह कहकर अपमान करते हैं। कि 'स्त्री चाहे कितनी ही कुलीन और अनिन्द्य हो वह बहुत निर्लज्ज होती है। अपने कुल में दाग़ लगाने से तथा इस बात से भी कि त्रिभुवन में उनके अपयश का डंका बज सकता है वह नहीं झिझकती । धिक्कारनेवाले पति के सामने अंग समेटकर आकर वह कैसे मुख दिखाती है !' - तब पुरुष की कलुषित वृत्ति से अपने शील की रक्षा में तत्पर सीता का मौन एकाएक आक्रोश में बदल गया । वह बोली- 'तुमने यह सब क्या बोलना प्रारम्भ किया है ? मैं आज भी सतीत्व की पताका ऊँची किये हुए हूँ इसलिये तुम्हारे देखते हुए मैं भी विश्रब्ध हूँ । नर और नारी में यही अन्तर है ! नारी उस लता और नदी के सदृश है जो मरते दम तक भी पेड़ का साथ नहीं छोड़ती तथा समुद्र को भी अपना सब कुछ समर्पित कर देती है। इसके विपरीत नर समुद्र के समान है जो पवित्र और कुलीन नदी को जो रेत, लकड़ी और पानी बहाती हुई समुद्र के पास जाती है पर वह (समुद्र) उसे भी खारा पानी देने से नहीं अघाता!' और यह कहकर शीघ्र ही सीता अग्नि परीक्षा के लिए लकड़ी के ढेर पर जाकर बैठ गयी। 20 आसक्ति-त्याग अग्नि परीक्षा में सीता के खरी उतरने पर राम ने उनसे कहा'अकारण दुष्ट चुग़ल - खोरों के कहने में आकर मेरे द्वारा की गयी अवमानना से तुम्हें जो इतना दुःख सहना पड़ा इसके लिए मुझे एकबार क्षमा कर दो तथा मेरा कहा अपने मन में रखो। ' 21 अब तो सीता का शील आत्म-स्वातन्त्र्य की प्राप्ति की ओर उन्मुख हो चुका था । उन्होंने कहा 'हे राम ! आप व्यर्थ में विषाद न करें, मैं विषय-भोगों से ऊब चुकी हूँ।' यह कहते हुए सीता ने सिर के केश उखाड़कर राम के समक्ष डाल दिये। यह देख राम मूच्छित हो गये । सीता ने सर्वभूषण मुनि के पास जाकर दीक्षा धारण करली । मूर्च्छा दूर होने पर राम ने सीता के पास जाकर उनका अभिनन्दन किया और स्वयं की निन्दा की 'धिक्कार है मुझे, जो लोगों के कहने से बुरा बर्ताव कर अकारण प्रिय पत्नी को वन में निर्वासित किया !' - - इस तरह सम्पूर्ण ऐश्वर्य को ठुकरादेनेवाली, अत्यन्त सत्त्व से विभूषित सीता तप में लीन हो गयी। 62 वर्ष तक घोर तपकर 33 दिन की समाधि के बाद उसने स्वर्ग में प्रतीन्द्र का पद पाया। तत्पश्चात् राम भी सुव्रत मुनि से दीक्षा ग्रहणकर, अनेक व्रतों को धारणकर तथा घोर तपश्चरण कर कोटि शिला पर चढ़कर ध्यान में लीन हो गये। 22 तब सीता का जीव जो प्रतीन्द्र हुआ था वह, राम कहाँ पर हैं - अवधिज्ञान से यह जानकर उनके पास आया । कोटिशिला पर ध्यान में लीन राम के पास आकर उस प्रतीन्द्र ने

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