________________
अपभ्रंश भारती 13-14
अक्टूबर 2001-2002
जसहरचरिउ में निरूपित इन्द्रिय संयम - एक विवेचन
- डॉ. आराधना जैन 'स्वतन्त्र'
यशोधर के जीवन-चरित्र को आधार बनाकर सोमदेव, वादिराज वासवसेन, सोमकीर्ति, हरिभद्र, क्षमाकल्याण आदि अनेक दिगम्बर-श्वेताम्बर रचनाकारों ने अपने ढंग से प्राकृत और संस्कृत भाषा में काव्यसृजन किया है। इनमें महाकवि पुष्पदन्तकृत ‘जसहरचरिउ' सबसे अधिक प्रसिद्ध है। यह महाकवि की तृतीय व अन्तिम कृति है। इसमें हिंसा पर अहिंसा की विजय का बोधक यशोधर का जीवन-चरित्र चार सन्धियों में प्रस्तुत है। ___.'जसहरचरिउ' की कथावस्तु का सारांश मात्र इतना ही है कि उज्जैन के राजा यशोधर और उनकी माता चन्द्रमती आटे का मुर्गा बनाकर देवी के समक्ष उसका बलिदान करते हैं। अन्त में विषाक्त भोजन के भक्षण से उनका मरण हो जाता है। वे अपने अगले जन्मों में क्रमशः मयूर' और कूकर', नकुल व सर्प, पाण्डुर रोहित मत्स्य' व सुंसुमार, फिर दोनों अज' अनन्तर अज' और महिष' अन्त में दोनों कुक्कुट होते हैं और तिर्यंच गति के दुःख भोगते हैं। अनन्तर सुसंस्कारों के प्रभाव से उसी उज्जैन के राजकुल में राजा यशोमति के पुत्र अभयरुचि और पुत्री अभयमती (भाई-बहन) के रूप में जन्म लेते हैं। वे धार्मिक जीवनपथ पर अग्रसर होते हुए क्षुल्लक एवं क्षुल्लिका दीक्षा अंगीकार कर लेते हैं। एक बार वे योधेय देश की राजधानी राजपुर में नरयुग्म की बलि के लक्ष्य से पकड़े जाकर" त्रिशूलधारिणी चण्डी देवी के मन्दिर में राजा मारिदत्त के समक्ष उपस्थित किये जाते हैं। राजा उनके मुख पर सामुद्रिक चिह्न देख उनका परिचय पूछता है। अपने गुरु-मुख से सुने अनुसार वे अपने पूर्व