Book Title: Apbhramsa Bharti 2001 13 14
Author(s): Kamalchand Sogani, Gyanchandra Khinduka
Publisher: Apbhramsa Sahitya Academy

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Page 64
________________ अपभ्रंश भारती 13-14 अक्टूबर 2001-2002 पउमचरिउ की सीता . - श्रीमती स्नेहलता जैन समाज में सुव्यवस्था बनाये रखने के लिए शारीरिक क्षमता के आधार पर साधारणतया महिलाओं का कार्य-क्षेत्र घर व पुरुषों का कार्य-क्षेत्र घर से बाहर निश्चित किया गया है। तदर्थ बच्चों का लालन-पालन, घर की सुन्दर व्यवस्था, शिल्प, संगीत आदि जीवन के सुखों के लिए अत्यन्त आवश्यक शिक्षा जैसे मधुर कार्यों पर नारी का पूरा अधिकार होने से वह केवल नारी न होकर कला की अधिष्ठात्री लगती है। उसके भावों में हृदय की कोमलता होती है। इसके विपरीत पुरुषों का कार्य-क्षेत्र घर के बाहर होने से उन्हें अपने क्षेत्र के विकास करने हेतु हृदय से ज्यादा बुद्धि पर निर्भर रहना पड़ता है। इसलिए उनके भावों में भी बुद्धि की कठोरता होना स्वाभाविक है। फिर भी कोमल भावों के मंजुल अंक पर पली हुई स्त्रियों के साहचर्य से कठोर पुरुषों को भी कोमल भावों का अनुभव होता है। इस प्रकार पुरुष व महिलाएँ दोनों ही अपने-अपने पथ के कर्तव्य का निर्वाह कर सुख एवं शान्ति से जीवनयापन करते हैं। - वस्तुतः ऐसा समतल जीवन जीना सभी के लिए हमेशा आसान नहीं है। विषम परिस्थितियों में अपरिहार्य कारणों से या अपनी विशेष योग्यता का उपयोग करने की महत्वाकांक्षा से महिलाओं को भी घर से बाहर निकलना पड़ा है। आज हम देख ही रहे हैं कि नौकरी व व्यवसाय से लेकर विज्ञान तथा तकनीकी कार्यों में भी वे पुरुषों का सहयोग करते हुए आगे बढ़ रही हैं। इन सभी महिलाओं को अपने-अपने कार्य-क्षेत्र में विकसित होते देखकर अपार हर्ष

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