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अपभ्रंश भारती 13-14 - जैसे ही राघव रात्रि के मध्य में चलते हैं, वैसे ही, उन्होंने परम महायुद्ध देखा। क्रुद्ध, विद्ध और पुलक विशिष्ट मिथुन, सैन्य की तरह भिड़ जाते हैं।
राम के पीछे अयोध्या से निकले राजागण एवं सैनिक लौटकर पुनः अयोध्या नहीं जाते। उनमें से कोई प्रव्रजित होता है, कोई त्रिपुण्डधारी संन्यासी बनता है, कोई त्रिकाल योगी, तो कोई जिनालय में जाकर संन्यास ले स्थित होता है।5 .
दशरथ के साथ एक सौ चालीस लोग प्रव्रजित होते हैं और कठोर पाँच महाव्रतों को धारण करते हैं।
सिंहरथ का अनुचर राजा वज्रकर्ण जिनभक्त है जो यह उपशम भाव लेता है कि जिननाथ को छोड़कर वह किसी और के लिए नमस्कार नहीं करेगा। राजा सिंहरथ द्वारा क्रुद्ध होकर रथपुर पर आक्रमण करने पर भी वह अपने संकल्प से विचलित नहीं होता। वज्रकर्ण द्वारा प्रदत्त अन्न को उपकार का भारी भार माननेवाले राम के आदेश से लक्ष्मण सिंहोदर से युद्ध करते हैं। भक्ति के मध्य वीर रस का यह निर्वाह अद्भुत है -
सूरु व जलहरेहिं जं वेढिओ कुमारो । उट्ठिउ धर दलन्तु दुव्वार-वइरि-वारो॥ को वि मुसुमूरिउ चूरीउ पाहिँ। को वि णिसुम्भिउ टक्कर-धाऍहिँ। को वि करग्नेंहिँ गयणे भमाडिउ ।. को वि रसन्तु महीयलें पाडिउ । को वि जुज्झविउ मेस-झडक्कएँ। को वि कडुवाविउ हक्क-दडक्कएँ। 25.15.1,5-7।।
X गेण्हेंवि पहउ णरिन्दु णरिन्दें। तुरएँ तुरउ गइन्दु गइन्दें। रहिएं रहिउ रहगु रहनें।
छत्ते छत्तु धयग्गु धयग्गे ॥ 25.16.8-9 ।। - मेघों के द्वारा सूर्य घेर लिया गया हो। तब दुर्वार शत्रुओं पर आक्रमण करनेवाला वह (लक्ष्मण) धरती को रौंदता हुआ उठा। किसी को कुचलकर उसने पैरों से चूर-चूर कर दिया, किसी को टक्करों के आघात से नष्ट कर दिया। किसी को हाथ से आकाश में उछाल दिया, चिल्लाते हुए किसी को धरती पर गिरा दिया। किसी से मेष की झड़प से भिड़ गया,
चपेट से खिन्न हो गया।