Book Title: Apbhramsa Bharti 2001 13 14
Author(s): Kamalchand Sogani, Gyanchandra Khinduka
Publisher: Apbhramsa Sahitya Academy

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Page 50
________________ अपभ्रंश भारती 13-14 37 - पकड़ने के लिए राजा से राजा, घोड़ों से घोड़ा, गजेन्द्र से गजेन्द्र, रथिक से रथिक, चक्र से चक्र, छत्र से छत्र और ध्वजाग्र से ध्वजाग्र आहत कर दिया गया। वृक्षों के नामादि का परिगणन कर कवि केवलज्ञान - उत्पत्ति के स्थानों का विस्तृत परिचय राम के माध्यम से देता है। 17 प्रतिमायोग में स्थित कुलभूषण एवं देशभूषण मुनियों को राम व्यन्तरों, साँपों, बिच्छुओं, लताओं से मुक्त कर धर्मपालन करते हैं जं दिट्ठ असेसु वि अहि- णिहाउ । वलएउ भयङ्करु गरुडु जाउ ।। 32.6.111 - जब राम ने समस्त सर्प-समूह देखा तो वे भयंकर गरुड़ बन गये । हज़ारों असुरों द्वारा आक्रान्त आकाश से मुनियों पर किए गए उपसर्ग पर वीर रामलक्ष्मण विजय प्राप्त करते हैं । इसी बीच मुनीन्द्रों को केवलज्ञान उत्पन्न हो जाता है। इस रूप में राम को धर्म की एवं मुनीन्द्रों को धर्म एवं मोक्ष की प्राप्ति होती है । केवलज्ञान प्राप्त मुनीन्द्रों की स्वयं इन्द्र देवगणसहित न केवल पूजा करता है वरन् लोगों को रागासक्ति एवं विषयों से दूर रहने का उपदेश भी देता है । 18 - कवि ने जीवोत्पत्ति - रहस्य का उद्घाटन विजयपर्वत राजा को परमेश्वर द्वारा दिए गए उपदेश में किया है - - जिउ तिण्णि अवत्थउ उव्वहइ । उत्पत्ति- जरा पहिलउ जे णिवद्धउ पुग्गल - परिमाण मरणावसरु । देह-घरु । सुत्तु धरें वि । कर-चलण चयारि खम्भ करेंवि । वहु-अत्थि जि अन्तर्हि ढकिियउ । चम्म छुह - पङ्किियउ । मासि सिर-कलसालकिउ संचरइ । माणुसु वर-भवणहो अणुहरइ ॥ 33.6.1-5॥ यह जीव तीन अवस्थाएँ धारण करता है । पहले उत्पत्ति-जरा और मरणावसरवाला देहरूपी घर निबद्ध होता है। पुद्गल परिमाणरूपी सूत्र लेकर, हाथ-पैररूपी चार खम्भे बनाकर, फिर बहुत-सी हड्डियों को आँतों से ढककर, माँस और हड्डियों को चर्मरूपी चूने से सान दिया गया है । सिररूपी कलश से अलंकृत वह चलता है। इस प्रकार मनुष्य वर भवन का अनुकरण करता है।

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