Book Title: Apbhramsa Bharti 2001 13 14
Author(s): Kamalchand Sogani, Gyanchandra Khinduka
Publisher: Apbhramsa Sahitya Academy

View full book text
Previous | Next

Page 52
________________ अपभ्रंश भारती 13-14 39 ___ इन्हीं महाव्रतियों से राम धर्म-कर्म और पाप-फल (अनुप्रेक्षाएँ) जानना चाहते हैं। कुलभूषण मुनि धर्म, दुष्कृत कर्म एवं सत्य का फल सुनाते हुए सत्य को सर्वोपरि प्रतिष्ठापित करते हैं। 'सच्चु स-उत्तरु सव्व] पासिउ।' उनसे ही राम पाँच महाव्रतों, धर्मानुचरण- मधु, मद्य, माँस का परित्याग, जीव-दया, संल्लेखनापूर्वक मृत्यु, सुकृताचरण- अहिंसा आदि, सत्याचरण, परद्रव्य-त्याग, अपरिग्रह आदि; पाँच अणुव्रत- जीवदया, सत्य-भाषण, अहिंसा, अपरिग्रह, दान; पाँच गुणव्रत- दिशा-प्रत्याख्या, भोगोपभोग आदि; शिक्षाव्रत- त्रिकाल-वन्दन, प्रोषधोपवास व्रत, आहार-दान, संन्यास-धारण, अनर्थदण्ड आदि का विस्तारयुक्त ज्ञान प्राप्त करते हैं।20 __ अरण्यारण्य में तपस्वी मुनि गुप्त एवं सुगुप्त को आहार-दानकर राम-सीता ऋद्धि प्राप्त करते हैं। दुन्दुभि, गन्ध पवन, रत्नावली, साधुकार और कुसुमाञ्जलि शाश्वत दूतों की तरह ये पाँचों आश्चर्य स्वयं प्रकट होते हैं। आहार-दान के फलस्वरूप ही देवों द्वारा दान-ऋद्धि के प्रदर्शन के रूप में राम के घर में साढ़े तीन लाख अत्यन्त मूल्यवान रत्नों की वृष्टि होती है। 'अन्नदान की प्रशंसा स्वयं सुरवर-समूह करता है - अण्णे धरिउ भुवणु सयरायरु। अण्णे धम्मु कम्मु पुरिसायरु ॥ 35.1.5 ।। - अन्न से ही सचराचर विश्व स्थित है, अन्न से ही धर्म, कर्म व पुरुषार्थ होता है। दान-ऋद्धि के प्रभाव से ही जटायु को न केवल अपने पूर्वजन्म का स्मरण हो आता है प्रत्युत उसके पंख सोने के, चोंच विद्रुम की, कण्ठ नीलमणि के, पैर वैदूर्यमणि के और पीठ मणियों की हो जाती है। जटायु, जो पूर्वजन्म में राजा दण्डक था, जैन धर्म स्वीकार करने और पाँच सौ साधुओं को आश्रय देने के बाद भी स्वजनों के षड्यन्त्र के कारण उन मुनियों की हत्या जैसा दुष्कर्म कर बैठता है और विनाश को प्राप्त हो विभिन्न नरकों में पाँच सौ बार पीड़ा प्राप्तकर हज़ारों योनियों में परिभ्रमण करता हुआ वर्तमान रूप में जन्म पाता है। स्वर्ग- अच्युत, ब्रह्मलोक, महेन्द्र, सौधर्म, ईशान, सर्वार्थसिद्धि, तीसरा एवं सोलहवाँ स्वर्ग तथा नरकरत्नप्रभ, शर्कराप्रभ, बालुकाप्रभ, असिपत्र, तम-तमप्रभा आदि का विस्तृत वर्णन इस महाकाव्य में उपलब्ध है। पाँच णमोकार मन्त्र के उच्चारण का महत्त्व स्वयंभूदेव जिन प्रसंगों में स्थापित करते हैं उनमें महत्त्वपूर्ण है- जटायु का मरणासन्न अवस्था में राम द्वारा पाँच णमोकार मन्त्र के उच्चारण के साथ आठ मूलगुण प्राप्त करना, जिसकी फल-प्राप्ति वह माहेन्द्र स्वर्ग एवं मोक्ष प्राप्ति के रूप में करता है; दूसरे, पंकजरुचि (पूर्वजन्म में धर्मदत्त, भवान्तर में श्रीचन्द्र, तद् अनन्तर श्रीराम) द्वारा मरणासन्न बूढ़े बैल के कान में सुनाया गया पंचणमोकार मन्त्र, जिसके प्रभाव से बैल का जीव जिनभक्त श्रीदत्ता के गर्भ स्थित हो जन्म के अनन्तर वृषभध्वज नाम से विख्यात होता है।

Loading...

Page Navigation
1 ... 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114