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अपभ्रंश भारती 13-14
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किसने तपा ? यह तपश्चरण अत्यन्त भीषण होता है । हे भरत, तुम बढ़-चढ़कर बात मत करो; तुम अभी बालक हो । विषय-सुखों का भोग करो। यह प्रव्रज्या का कौन-सा समय है? कर्म, ज्ञान एवं भक्ति के सम्यक् निर्वाह हेतु काव्य में शृंगार, वीर, शम एवं भक्ति रसों की आयोजना हुई है । भक्ति के समानान्तर वीर रस की अजस्र प्रवहमान धारा अन्य दो मूल्यों- अर्थ एवं काम-प्राप्ति की दिशा में ले जाती है। काम मार्ग अवरुद्ध होने पर क्रोध उत्पन्न होता है और क्रोध जन्म देता है शत्रु-भाव को; परिणामत: काव्य में वीर रस का विधान होता है । दशरथ एवं हरिवाहन के मध्य युद्ध का कारण है- कैकेयी के रूप पर आसक्ति । भामण्डल के उद्वेग का कारण है पट निर्मित सीता-प्रतिमा का अनिन्द्य सौन्दर्य । कैकेयी के उद्वेग का कारण है- अर्थ-काम-प्राप्ति में उत्पन्न उपसर्ग । राजा दशरथ के प्रव्रज्यायज्ञ का समाचार उसे भरत के लिए राज्य - वरदान माँगने को प्रेरित करता ।" लक्ष्मण का क्रोध राम के प्रति स्नेहाधिक्य के कारण राम-राज्य - प्राप्ति में बाधक - कारकों पर फट पड़ता है; किन्तु, राम द्वारा शान्त किए जाने पर वे उनके साथ जिनवर की अभ्यर्थना में संलग्न होते हैं। फलत: उनकी स्तुति निम्न रूप में प्रस्फुटित होती हुई अन्ततोगत्वा 'जय - मोक्ख महीहरे अत्थमिय' भाव पूजा पर समाप्त होती है।
जय गय-भय-राय-रोस विलय । जय मयण महण तिहुवण तिलय । जय खम-दम-तव-वय-नियम-करण ।
जय कलि-मल-कोह- कसाय हरण ।। 23,10-3 ॥
- राग-द्वेष (क्रोध) का नाश करनेवाले आपकी जय हो। हे काम का नाश करनेवाले त्रिभुवन श्रेष्ठ, आपकी जय हो । क्षमा, दम, तप, व्रत और नियम का पालन करनेवाले, आपकी जय हो । पाप के मल, क्रोध और कषाय का हरण करनेवाले, आपकी जय हो ।
रुद्रभूति पर उनके क्रोध का कारण है उसके द्वारा कल्याणमाला के पिता को बन्दी बनाना। वनमाला के पिता से भी लक्ष्मण का युद्ध होता है और लक्ष्मण उसकी सेना को मार गिराते हैं -
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उव्वड भिडड़ पाड़इ तुरङ्ग । महि कमइ भमइ भामड़ रहङ्ग । अवगाहइ साहइ धरइ जेह । दलवट्टइ लोहइ गयवरोह ||
29.9.5-6 ||
- (वह) उछलता है, भिड़ता है, अश्वों को गिराता है। धरती का उल्लंघन करता है, घूमता है और चक्र को घुमाता है ।