Book Title: Apbhramsa Bharti 2001 13 14
Author(s): Kamalchand Sogani, Gyanchandra Khinduka
Publisher: Apbhramsa Sahitya Academy

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Page 46
________________ अपभ्रंश भारती 13-14 - लक्ष्मण ने अपना धनुष चढ़ाया। धनुष के शब्द से तीव्र हवा उठी। तीव्र हवा से आहत मेघ गरज उठे। मेघों की गर्जना से वज्राशनि पड़ने लगे। जब पहाड़ गिरे तो शिखर उछलने लगे। उछलते हुए वे चले और धरती दलित होने लगी। धरती दलन से साँपों की विषाग्नि छोड़ने लगी, जो मुक्त होकर वह केवल समुद्र तक पहुँची। पहुँचते ही ज्वालाओं ने चिनगारियाँ फेंकी, उससे प्रचुर सीपी, शंख-सम्पुट जल उठा। मुक्ताफल धक-धक करने लगे, सागर-जल कड़-कड़ करने लगे। किनारों के अन्तराल हस-हस करके सने लगे, भुवनों के अन्तराल जलने लगे। हनुमान का पराक्रम कवि इन शब्दों में चित्रित करता है पर-वलु अणन्तु हणुवन्तु एक्कु । गय-जूहहाँ णाई मइन्दु थक्कु । आरोक्कइ कोक्कइ समुहु थाइ। जहिँ जहिं जें थट्ट तहिँ तहिँ जे धाइ। X सो ण वि भडु जासु ण मलिउ-माणु । सो ण वि धउ जासु ण लग्गु वाणु । सो ण वि तुरङ्ग जसु गुडु ण तुटु । सो ण वि रहु जसु ण रहङ्गु फुट्ट । सो ण वि भडु जासु ण छिण्णु गत्तु । तं ण वि विमाणु जं सरु ण पत्तु ॥ 65.1.1-8 ।। - शत्रु-सेना असंख्य थी और हनुमान् अकेला था, मानो गजघटा के बीच सिंह स्थित हो। वीर हनुमान् उन्हें रोकता, ललकारता और सम्मुख जाकर खड़ा हो जाता। जहाँ झुण्ड दिखाई देता वहीं दौड़ पड़ता। ऐसा एक भी योद्धा नहीं था जिसका मान गलित न हुआ हो, ऐसा एक भी ध्वज नहीं था जिसमें तीर न लगा हो, ऐसा एक भी राजा नहीं था जिसका कवच न टूटा-फूटा हो, ऐसा एक भी गज नहीं था जिसका गण्डस्थल आहत न हुआ हो। एक भी ऐसा अश्व नहीं था कि जिसकी लगाम साबुत बची हो। ऐसा एक भी रथ नहीं था जिसका पहिया टूटा-फूटा न हो। एक भी ऐसा योद्धा नहीं था जिसका शरीर आहत न हुआ हो। ऐसा एक भी विमान नहीं था जिसमें तीर न लगे हों। लक्ष्मण के शक्ति से आहत होने पर राम रावण के छः रथ, छ: धनुष और छः छत्र नष्ट करते हैं। विहिं हत्थेहिं पहरइ रामचन्दु। वीसहिं भुव दण्डहिँ णिसियरिन्दु।

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