Book Title: Apbhramsa Bharti 2001 13 14
Author(s): Kamalchand Sogani, Gyanchandra Khinduka
Publisher: Apbhramsa Sahitya Academy

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Page 40
________________ अपभ्रंश भारती 13-14 अक्टूबर 2001-2002 27 'पउमचरिउ' : भक्ति, वीर एवं श्रृंगार रस का अद्भुत समन्वय - डॉ. मधुबाला नयाल अपभ्रंश काव्य-परम्परा में महाकवि स्वयंभूदेव का ‘पउमचरिउ' अपने मौलिक कथाप्रसंगों एवं शिल्पगत विशेषताओं की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण है। पाँचों काण्डों- विद्याधर काण्ड, अयोध्या काण्ड, सुन्दर काण्ड, युद्ध काण्ड एवं उत्तर काण्ड के रूप में बँटी कथा की 90 सन्धियाँ अद्भुत काव्य-प्रतिभा का परिचय है। भामह, दण्डी, रुद्रट एवं आचार्य विश्वनाथ द्वारा महाकाव्य के स्वरूप की प्रस्तुत की गई कसौटियों में कथानक, सर्ग-निबन्धन, महान् चरित्र-अवतारणा, उत्कृष्ट एवं अलंकृत शैली, चतुर्वर्ग-सिद्धि, वर्ण्य वस्तु-विस्तार एवं रसयोजना महत्त्वपूर्ण हैं। स्वयंभू का ‘पउमचरिउ' इन मानदण्डों पर खरा सिद्ध होते हुए रसयोजना की दृष्टि से अत्यन्त प्रभविष्णु है। अभिव्यञ्जना का माध्यम है शब्द । स्वयंभूदेव शब्दों की आत्मा को, भाषा की बारीकियों को पकड़ते हुए अपभ्रंश भाषा के सूक्ष्म और गूढ़ नियमों का सावधानी से पालन करते हैं। उदात्त अभिव्यक्ति के पाँच प्रमुख स्रोत माने गए हैं(1) महान् धारणाओं की क्षमता (2) प्रेरणा-प्रसूत आवेग (3) अलंकारों की समुचित योजना

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