Book Title: Apbhramsa Bharti 2001 13 14
Author(s): Kamalchand Sogani, Gyanchandra Khinduka
Publisher: Apbhramsa Sahitya Academy

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Page 38
________________ 25 अपभ्रंश भारती 13-14 25. सीता प्रथम अनल महुँ राखी। प्रगट कीन्हि चह अंतर साखी।। तेहि कारन करुनानिधि कहे कछुक दुर्बाद । सुनत जातुधानी सब लागी करै विषाद ॥ 108॥ प्रभु के बचन सीस धरि सीता। बोली मन क्रम बचन पुनीता ॥ लछिमन होहु धरम के नेगी। पावक प्रगट करहु तुम्ह बेगी। पावक प्रबल देखि बैदेही। हृदयँ हरष नहिं भय कछु तेही॥ जौं मन बच क्रम मम उर माहीं। तजि रघुबीर आन गति नाहीं।। तौ कृसानु सब कै गति जाना। मो कहुँ होउ श्रीखण्ड समाना || 108 । a - लंका., रा.च.मा. 26. श्रीखण्ड सम पावक प्रवेस कियो सुमिरि प्रभु मैथिली। जय कोसलेस महेस बंदित चरन रति अति निर्मली ।। प्रतिबिंब अरु लौकिक कलंक प्रचंड पावक महुँ जरे । प्रभु चरित काहुँ न लखे नभ सुर सिद्ध मुनि देखहिं खरे ।। धरि रूप पावक पानि गहि श्री सत्य श्रुति जग बिदित जो। जिमि छीरसागर इंदिरा रामहिं समपी आनि सो ।। सो रा बाम बिभाग राजति रुचिर अति सोभा भली । नव नील नीरज निकट मानहुँ कनक पंकज की कली। 109 ।। - लंका., रा.च.मा. ____ 20, गोपालनगर पो. ऑ. आलमबाग लखनऊ - 226 023

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