Book Title: Apbhramsa Bharti 2001 13 14
Author(s): Kamalchand Sogani, Gyanchandra Khinduka
Publisher: Apbhramsa Sahitya Academy
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24
अपभ्रंश भारती 13-14 णर-णारिहिं एवड्डउ अंतरु । मरणें वि वेल्लि ण मेल्लइ तरुवरु ।। 83.9.6॥ वही
22. णिठुरु णिरासु मायारउ दुक्किय-गारउ कूर-मइ।
णउ जाणहुं सीय वहेविणु रामु लहेसइ कवण गइ ।। 83.12.9 ।। वही
23.
तो वोलिज्जइ राहव-चंदे। “णक्कारणे खल-पिसुणहँ छंदें।। जं अवियप्पें मइँ अवमाणिय। अण्णु वि दुहु एवड्डु पराणिय ॥ तं परमेसरि महु मरुसेज्जहि। एक्क-वार अवराहु खमेज्जहि॥ 83.16.1-3 | वही
मणे घरहि एउ महु वुत्तउ मच्छरू सयलु वि परिहरहि। सइ जिह सुरवइ-संसग्गिएँ णीसावण्णु रज्जु करहि ।। 83.16.8 ॥ वही
24.
तं णिसुणेवि परिचत्त-सणेहिएँ। एव पजम्पिउ पुणु वइदेहिएँ ।। अहाँ राहव मं जाहि विसायहों। ण वि तउ दोसु ण जण-संघायहों। भव-भव-सऍहि विणासिय-धम्महों। सव्वु दोसु ऍउ दुक्किय-कम्महों।
83.17.1-3, वही xxx एवहिं तिह करेमि पुणु रहुवइ । जिह ण होमि पडिवारी तियमइ ।। महु विषय-सुहेहि पज्जत्तउ छिन्दमि जाइ-जरा-मरणु।। णिव्विण्णी भव-संसारहों लेमि अज्जु थुवु तव-वरणु ।। 83.17.9-10। वही
एम ताएँ ऍउ वयणु चवेप्पिणु । दाहिण-करेंण समुप्पाडेप्पिणु ॥ णिय-सिर चिहुर तिलोयाणन्दहों। पुरउ पघल्लिय राहव-चंदहों।
83.18, वही
सीयएँ सील-तरण्डएँ थाऍवि। लइय दिक्ख रिसि-आसमें जाऍवि ।। पासें सव्वभूसण-मुण्णिाहहों। णिम्मल-केवल-णाण-सणाहहों। जाय तुरिउ तव-भूसिय-विग्गहु । मुक्क-सव्व-पर-वत्थु-परिगहु॥
83.18.6-8, वही

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