Book Title: Apbhramsa Bharti 2001 13 14
Author(s): Kamalchand Sogani, Gyanchandra Khinduka
Publisher: Apbhramsa Sahitya Academy

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Page 32
________________ अपभ्रंश भारती 13-14 मूलं धर्मतरोविवेकजलधेः पूर्णेन्दुमानन्ददं, वैराग्याम्बुजभास्करं ह्यघघनध्वान्तापहं तापहम् । मोहाम्भोधरपूगपाटनविधो स्वःसंभवं शंकर, वंदे ब्रह्मकुलं कलंकशमनं श्रीरामभूपप्रियम् ।। 3.1 ।। वही कुन्देन्दीवरसुंदरावतिबलौ विज्ञानधामावुभौ, शोभाढयौ वरधन्विनौ श्रुतिनुतौ गोविप्रवृंदप्रियौ। मायामानुषरूपिणौ रघुवरौ सद्धर्मवौं हितो, सीतान्वेषणतत्परौ पथिगतौ भक्तिप्रदौ तौ हि नः। 4.1 ।। वही xxx शान्तं शाश्वतमप्रमेयमनघं निर्वाणशांतिप्रदं, ब्रह्माशंभुफणीन्द्रसेव्यमनिशं वेदांतवेद्यं विभुम् । रामाख्यं जगदीश्वरं सुरगुरुं मायामनुष्यं हरिं, वंदेऽहं करुणाकरं रघुवरं भूपालचूड़ामणिम् ।। 5.1 ॥ वही ___xxx रामं कामारिसेव्यं भवभयहरणं कालमत्तेभसिंह, योगीन्द्रं ज्ञानगम्यं गुणनिधिमजितं निर्गुणं निर्विकारम् । मायातीतं सुरेशं खलवधनिरतं ब्रह्मवृन्दैकदेवं, वन्दे कन्दावदातं सरसिजनयनं देवमुर्वीशरूपम् ।। 6.1 ।। वही केकीकण्ठाभनीलं सुरवरविलसद्विप्रपादाब्जचिह्न, शोभाढ्यं पीतवस्त्रं सरसिजनयनं सर्वदा सुप्रसन्नम् । पाणौ नाराचचापं कपिनिकरयुतं बन्धुना सेव्यमानं, नौमीड्यं जानकीशं रघुवरमनिशं पुष्पकारूढरामम् ।। 7.1 ॥ वही ___4. सुनहु प्रिया व्रत रुचिर सुसीला। मैं कछु करबि ललित नरलीला।। ___ तुम्ह पावक महुँ करहु निवासा। जो लगि करौ निसावर नासा ।।

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