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अपभ्रंश भारती 13-14 'पउमचरिउ' तथा 'रामचरितमानस' में संयोजित अवान्तर प्रसंगों का तुलनात्मक अध्ययन
यद्यपि 'पउमचरिउ' तथा 'मानस' दोनों में ही अनेक अवान्तर प्रसंग आये हैं जो मूलकथा को गति प्रदान करने के साथ ही विभिन्नता भी प्रदान करते हैं परन्तु दोनों महाकाव्यों में मूलकथा एक होने के उपरान्त भी अवान्तर कथाएँ नितान्त भिन्न हैं। चरिउ में वर्णित अवान्तर कथाएँ इस प्रकार हैं- विभिन्न वंशों, यथा- विद्याधर, इक्ष्वाकु इत्यादि की उत्पत्ति, भरत-बाहुबलि आख्यान, भामण्डल आख्यान, रुद्रभूति और बालिखिल्य की कथा, वज्रकर्ण तथा सिंहोदर की कथा, राजा अनन्तवीर्य की कथा, पवनंजय आख्यान, वरुणगाँव के कपिल मुनि, यक्षनगरी, कुलभूषण-देशभूषण मुनियों की कथायें इत्यादि।
'मानस' में अवान्तर कथाओं के अन्तर्गत जो कथायें ली जा सकती हैं वे इस प्रकार हैं- शिव-पार्वती कथा, विश्वमोहिनी की कथा, मनु-शतरूपा आख्यान, कैकेयदेश के राजा प्रतापभानु के पूर्वजन्म की कथा, जय-विजय की कथा, कश्यप-अदिति आख्यान, निषादराज, गुह, भरद्वाज, अगस्त्य, सुतीक्ष्ण ऋषियों से भेंटवार्ता, अहल्योद्धार, जयन्त-प्रकरण, शबरी, शूर्पनखा, मन्थरा, जटायु, सुमंत्र, सम्पाती, ताड़का, खरदूषण तथा परशुराम प्रसंग प्रभृति । इसके अतिरिक्त भी रावण तथा काकभुशुण्डि के चरित्र को भी प्रासंगिक कथाओं के अन्तर्गत लिया जा सकता है।
इस प्रकार पउमचरिउ एवं रामचरितमानस दोनों में राम की कथा नितान्त भिन्न है।
तिहुअणलग्गण- खम्भु गुरु परमेट्ठि णवेप्पिणु। पुणु आरम्भिय रामकह, आरिसु जोएप्पिणु ।। पणवेप्पिणु आइ- भडाराहो। संसार - समुदुत्ताराहो ॥ 1.1 ॥ पउमचरिउ इय चउवीस वि परम-जिण पणवेप्पिणु भावें। पुणु अप्पाणउ पायडमि रामायण- कावें ।। 1.19 पउमचरिउ ।। वर्णनामर्थसंधानां रसानां छंदसामपि। मंगलानां च कर्तारौ वंदे वाणीविनायकौ ॥ 1.1 ॥ रामचरितमानस
xxx यस्यांके च विभाति भूधरसुता देवापगा मस्तके, भाले बालविधुर्गले च गरलं यस्योरसि व्यालराट्। सोऽयं भूतिविभूषणः सुरवरः सर्वाधिपः सर्वदा, शर्वः सर्वगतः शिवः शशिनिभ: श्रीशंकरः पातु माम् ।। 2.1 ।। वही