Book Title: Apbhramsa Bharti 2001 13 14
Author(s): Kamalchand Sogani, Gyanchandra Khinduka
Publisher: Apbhramsa Sahitya Academy

View full book text
Previous | Next

Page 28
________________ अपभ्रंश भारती 13-14 दिखाया गया है। रावण द्वारा बहुरूपिणी विद्या के कारण लक्ष्मण बार-बार भ्रमित होते हैं, अन्तत: लक्ष्मण अपने हाथ में चक्र ले लेते हैं तब रावण लक्ष्मण को प्रहार हेतु ललकारता है। लक्ष्मण रावण के ललकारने से कुद्ध होकर उस पर चक्र से आघात करते हैं, जिससे रावण मृत्यु को प्राप्त होता है। मानस में रावण का वध राम करते हैं। यहाँ पर एक अन्य तथ्य ध्यान देने योग्य है कि पउमचरिउ में जब लक्ष्मण व रावण का युद्ध हो रहा था उस समय विभीषण यह चिन्तन करके आशंकित होता है कि 'आज लंका नगरी मिट जायेगी, रावण मारा जायेगा, सन्तति नष्ट हुई, मन्दोदरी, वैभव तथा राज्य सब कुछ नष्ट हो जायेगा। विभीषण को आशंकित तथा चिन्तित देखकर ही लक्ष्मण कहते हैं कि धैर्य रखो, सीता अर्पित करने पर रावण को क्षमा कर दूंगा।' मानस में ऐसा कोई प्रसंग नहीं मिलता है जिसमें रावणवध के पूर्व विभीषण इस प्रकार लंका तथा रावण हेतु चिन्तित हो वरन् मानस में स्वयं विभीषण राम को बताता है कि रावण के नाभि में तीर मारने पर ही उसकी मृत्यु होगी। सीता-निर्वासन प्रसंग पउमचरिउ में सीता-निर्वासन का प्रसंग उत्तरकाण्ड की इक्यासीवी सन्धि में किया गया है। इक्यासीवीं सन्धि के प्रारम्भ से ही इस प्रसंग की पृष्ठ-भूमि का वर्णन किया गया है। 4 स्वयंभू का इस सम्बन्ध में मत है कि राम द्वारा सीता को निर्वासन किये जाने का मुख्य कारण लोकापवाद था। सीता राम से स्वयं द्वारा देखे गये एक स्वप्न का अर्थ पूछती हैं, राम बताते हैं कि वे शीघ्र दो पुत्रों को जन्म देंगी। राम सीता से उनकी मनोकामना पूछते हैं, सीता जिन भगवान् की अभ्यर्थना की इच्छा प्रकट करती हैं, राम नन्दनवन में सीता के साथ परमजिन की आराधना करते हैं, उसी समय प्रजाजन वहाँ आकर राम से कहते हैं- हे परम परमेश्वर राम, आप रघकलरूपी पवित्र आकाश में चन्द्रमा के समान हैं फिर भी यदि आप स्वयं इस अपराध का अपने मन में विचार नहीं करते तो यह अयोध्या नगर आपसे निवेदन करना चाहेगा। खोटी स्त्रियाँ उन्मुक्त रूप से परपुरुषों के साथ रमण कर रही हैं और पूछने पर उनका उत्तर होता है कि क्या सीतादेवी वर्षों तक रावण के घर पर नहीं रहीं ? और आने के पश्चात् क्या राम ने सीतादेवी का उपभोग नहीं किया ? राम यह सुनकर विचारमग्न हो जाते हैं और सामाजिकों के व्यवहार तथा मानसिकता के बार में सोचते हैं। प्रजाजनों की बातें सुनकर राम दुःखी होते हैं, लक्ष्मण क्रोधित हो जाते हैं। लक्ष्मण कहते हैं कि जिस प्रकार मैंने युद्धस्थल में खर तथा रावण का वध किया वही हाल मैं सीता की निन्दा करनेवालों का करूँगा परन्तु राम लक्ष्मण को शान्त करके कहते हैं कि 'हे भाई ! तुम इसे दूर करो, जनकतनया को कहीं भी वन में छोड़ आओ, चाहे वह मरे या जिये, उससे अब क्या ? क्या दिनमणि के साथ रात रह सकती है ? रघुकुल में कलंक मत लगने दो, त्रिभुवन में कहीं अयश का डंका न पिट जाये," यह सुनकर लक्ष्मण निरुत्तर हो जाते हैं। सारथि दुःखी मन से सीता को वन में छोड़ आता है। सारथि वन में सीता से कहते हैं - 'हे देवी, राम ही जान सकते हैं, इसमें मेरा दोष नहीं है।

Loading...

Page Navigation
1 ... 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114