Book Title: Apbhramsa Bharti 2001 13 14
Author(s): Kamalchand Sogani, Gyanchandra Khinduka
Publisher: Apbhramsa Sahitya Academy

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Page 27
________________ 14 अपभ्रंश भारती 13-14 आशाली विद्या नष्ट हो गयी, विभीषण भी चला गया है, इन्द्रजीत तथा भानुकर्ण बन्दीगृह में हैं, नन्दनवन उजड़ गया, क्या इन परिस्थितियों के उपरान्त सन्धि का प्रस्ताव उचित होगा ? तब रावण मन्दोदरी से कहता है कि इतना सब-कुछ होने पर भी मैं तुम्हारी इच्छा का अपमान नहीं करना चाहता। मैं सन्धि एक शर्त पर कर सकता हूँ- 'राम राज्य, रत्न, कोष सब कुछ ले लें बदले में तुम्हें, मुझे और सीता को छोड़ दें।' __यह प्रस्ताब सुनकर मन्दोदरी कहती है कि 'कौन जान सकता है कि राम धरती लेकर जानकी को दे देंगे!' रावण का यह प्रस्ताव लेकर दूत प्रस्थान करता है। वहाँ राम उसे प्रेमपूर्वक आसन देते हैं, प्रस्ताव को सुनकर राम कहते हैं कि मुझे मात्र सीता चाहिये बाकी सब कुछ रावण रख लें। इस पर दूत अत्यन्त अशोभन वचन कहता है, जिससे सैनिक उसे अपमानित करके निष्कासित कर देते हैं। मानस में लक्ष्मण के चेतन होने के उपरान्त यह प्रसंग नहीं आया है कि रावण सन्धि हेतु किसी दूत को राम के पास भेजते हैं।' रावण द्वारा आयोजित यज्ञ का वर्णन ___पउमचरिउ में इकहत्तरवीं तथा बहत्तरवीं सन्धि में रावण की आराधना का वर्णन किया गया है जो वह बहुरूपिणी विद्या की प्राप्ति हेतु कर रहा था। पउमचरिउ के अनुसार रावण अंग तथा अंगद के व्यवधान उत्पन्न करने के उपरान्त भी बहुरूपिणी विद्या को प्राप्त करता रामचरितमानस के लंकाकाण्ड में भी एक प्रसंग आया है जिसमें रावण युद्ध के उपरान्त कुछ यज्ञ करता है, विभीषण यह समाचार राम को जाकर देता है तथा साथ ही यह सलाह भी देता है कि वानर योद्धाओं को भेजकर यज्ञ का विध्वंस कराइये अन्यथा यज्ञ सिद्ध हो जाने पर रावण को मारना दुष्कर होगा। तब वानर जाकर उसके यज्ञ में व्यवधान उत्पन्न करते हैं तथा अन्तत: यज्ञ विध्वंस कर डालते हैं। यहाँ पर पउमचरिउ तथा मानस में यह अन्तर है कि मानस में यह वर्णन पउमचरिउ के समान विस्तारपूर्वक नहीं वर्णित किया गया है। द्वितीय, पउमचरिउ में रावण किसी भी परिस्थिति से विचलित नहीं होता है तथा अन्तत: बहुरूपिणी विद्या को प्राप्त करने में सफल हो जाता है परन्तु मानस में रावण वानरों के उत्पात से क्रुद्ध होकर यज्ञ के मध्य से ही उठकर वानरों को मारने लगता है और वानर यज्ञ विध्वंस कर देते है।' रावण-वध पउमचरिउ के अन्तिम काण्ड, युद्धकाण्ड की प्रारम्भिक अर्थात् पचहत्तरवीं सन्धि में रावण-वध का उल्लेख किया गया है। पउमचरिउ में लक्ष्मण तथा रावण का घमासान युद्ध

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