Book Title: Apbhramsa Bharti 1997 09 10
Author(s): Kamalchand Sogani, Gyanchandra Khinduka, Gopichand Patni
Publisher: Apbhramsa Sahitya Academy

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Page 17
________________ अपभ्रंश भारती - 9-10 सम्यक प्रकार से अपने शुद्ध स्वरूप में स्थिर होना ही संयम है। यह संयम दो प्रकार का है - इन्द्रिय-संयम और प्राणि-संयम। इन्द्रिय-विषयों में अत्यधिक आसक्ति का न होना इन्द्रियसंयम है और पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, वनस्पति एवं त्रस - इन छ: काय के जीवों की रक्षा करना प्राणि-संयम है। प्राणि-संयम के द्वारा छ: काय के जीवों की रक्षा तथा इन्द्रिय संयम के द्वारा विषय-भोगों के प्रति तीव्र और असीम आसक्ति को कम करके मानव स्वयं भी तनावमुक्त जीवन जी सकता है और अपने आस-पास के वातावरण को भी स्वच्छ बना सकता है। जैनदर्शन में अहिंसा और अपरिग्रह को इसीलिये सर्वाधिक महत्त्व दिया गया है। - अपभ्रंश के जैन कवियों तथा संत कबीर ने सुख-प्राप्ति के लिए उक्त दोनों प्रकार के संयम को अनिवार्य बताया है। ____ मुनि रामसिंह अपनी रचना 'पाहुड दोहा' में इन्द्रिय-संयम की आवश्यकता बताते हुए कहते हैं कि हे जीव! तू विषयों की इच्छा मत कर, विषय कभी भले नहीं होते। सेवन करते समय तो ये मधुर लगते हैं किन्तु बाद में दुःख ही देते हैं - विसया चिंत म जीव तुहुं विसयण भल्ला होति। सेवंताहं महुर बढ़ा पच्छई दुःक्खई देंति ॥ 200॥ वे कहते हैं - यदि इन्द्रिय-विषयों के सेवन से सुख की प्राप्ति हो सकती तो भगवान ऋषभदेव, जिन्हें सभी प्रकार के इन्द्रिय-सुख सुलभ थे, उनका त्याग क्यों करते ? खंतु पियंतु वि जीव जइ पावइ सासय सोक्खु । रिसह भंडारउ किं चवइ सयलु वि इन्दिय सोक्खु ॥ 63 ॥ जोइन्दु मुनि ने भी विषयासक्ति को सुख का बाधक और दुःख का कारण कहा है। वे कहते हैं कि रूप से आकृष्ट होकर पतंगे दीपक में जलकर मर जाते हैं, शब्द में लीन होकर हरिण शिकारी के बाणों का शिकार हो जाते हैं, स्पर्श के लोभ से हाथी गढ़े में गिरकर बंधन को प्राप्त होते हैं, सुगन्ध की लोलुपता के कारण भौंरे कमल में बन्द होकर काल-कवलित हो जाते हैं और रस के लालची मत्स्य धीवर के जाल में फंसकर मृत्यु का आलिंगन करते हैं । जब पतंगादि एक-एक इन्द्रिय के विषय में आसक्त होकर विनष्ट हो जाते हैं तो पाँचों इन्द्रियों के विषयों में आसक्त मानव की क्या दशा होगी? विचारणीय है - रूवि पयंगा सद्दि मय गय फासहि णासन्ति। अलिउल गन्धई मच्छ रसि किम अणुराउ करन्ति ॥ 2.112।।पर. प्र. महयदि कवि ने भी दोहा पाहुड में कंचन और कामिनी को सांसारिक विषयों में प्रधान बताते हुए इनके प्रलोभन से सावधान रहने को कहा है -. झंपिय धरि पंचेन्दियहं णिय णिय विसहं जेति। किं ण पेच्छइ झाणट्ठियई जिण उपएस कहंत॥ 101॥

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