Book Title: Apbhramsa Bharti 1997 09 10
Author(s): Kamalchand Sogani, Gyanchandra Khinduka, Gopichand Patni
Publisher: Apbhramsa Sahitya Academy
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अपभ्रंश भारती - 9-10
113 सुंदरकाण्ड
पैंतालीसवीं संधि, लक्ष्मीनगर में भूपाल राग में गान हो रहा था।06 युद्धकाण्ड
एकहत्तरवीं संधि में संगीत को वर्णित करते हुए कहा गया है- भउंद, नंदी, मुंदग, हुड्डक्क, ढक्क, काहल, सरूअ, भेरी, झल्लरी, दडिक्क, हाथ की कर्तार सद्ददुर, खुक्कड, ताल, शंख और संघड, डउण्ठ, डक्क, टट्टरी, झुणुक्क, भम्म, किङ्करी, ववीस, वंश, कंस तथा तीन प्रकार के स्वर वहाँ बजाये गये। प्रवीण, वीण तथा पाविया प्रभृति पटहों की ध्वनि अति सुहावनी प्रतीत हो रही थी। उत्तम अंगनायें नृत्य कर रहीं थीं। रावण ने स्वयं वाद्य बजाकर मंगल-गान
गाया।107
बहत्तरवीं संधि में वाद्य यंत्रों का नामोल्लेख किया गया है- दड़ी, दर्दुर, पटह, त्रिविला, ढड्ढ्डढ्डहरी, झल्लरी, भम्भ, भम्मीस, कंसाल, मुरव, ढढिय, धुमुक्क, ढक्क, श्रेष्ठ हुडुक्क, पणव, एक्कपाणि प्रभृति । 108 उत्तरकाण्ड ____ अट्ठहत्तरवीं संधि में उत्साह मंगल तथा धवल गीतों का उल्लेख किया गया है । कत्थक नृत्य का उल्लेख भी क्रमशः आया है ।'09
उन्नासीवीं संधि में पुन: कत्थक शब्द प्रयुक्त हुआ तथा बांसुरी का उल्लेख आया है। यहाँ पर बयालीस स्वरों की ध्वनियों, विचित्र मल्लफोड़ स्वरों का भी उल्लेख किया गया है। 10
सत्तासीवीं संधि में रावण की मृत्यु पर किंकर्तव्यविमूढ होकर उसके अंत:पुर की सुंदर स्त्रियाँ दुःखाकुल होकर विविध चेष्टायें करती हैं। कोई नृत्य कर रही हैं, कोई वीणा बजा रही है तथा कोई गंधर्व-राग गा रही हैं।11 'पउमचरिउ' में व्याख्यायित अर्थशास्त्र
विद्याधरकाण्ड की चौथी संधि में कर-व्यवस्था का वर्णन मिलता है। इससे ज्ञात होता है कि 8वीं शती में भी कर-व्यवस्था प्रचलित थी। 'पउमचरिउ' में इस व्यवस्था का उल्लेख आपसी वाद-विवाद के संदर्भ में आया है राजा भरत के मंत्रिगण पोदनपुर नरेश बाहुबलि से क्रोधित होकर कहते हैं-यद्यपि यह भूमिमण्डल तुम्हें पिता के द्वारा दिया गया है परन्तु इसका एकमात्र फल बहुचिंता है। बिना कर दिये ग्राम, सीमा, खल और क्षेत्र तो क्या? सरसों के बराबर धरती भी तुम्हारी नहीं है।12 ___अयोध्याकाण्ड में अठाईसवीं संधि में अर्थ की महत्ता का वर्णन करते हुये एक ब्राह्मण लक्ष्मण से कहता है- संसार में धन का सम्मान कौन नहीं करता? जिस प्रकार लक्ष्मी के घर में आनंद होता है अर्थ वैसा आनंद देता है । अर्थ विलासिनियों के समूह को प्रिय होता है । अर्थरहित मनुष्य छोड़ दिया जाता है। अर्थ पण्डित है, गुणवान है । अर्थरहित मनुष्य मांगता हुआ घूमता है। अर्थ कामदेव है, अर्थ विश्व में सुभग है। अर्थरहित मनुष्य दीन तथा दुर्भग होता है। अर्थ अपनी इच्छानुसार राज्य का भोग करता है। अर्थरहित व्यक्ति हेतु कोई काम नहीं हैं। 13