Book Title: Apbhramsa Bharti 1997 09 10
Author(s): Kamalchand Sogani, Gyanchandra Khinduka, Gopichand Patni
Publisher: Apbhramsa Sahitya Academy

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Page 140
________________ अपभ्रंश भारती - 9-10 125 स्तोत्र-ग्रंथों में अभयदेवसूरि के जयतिहुमणस्तोत्र, ऋषभजिनस्तोत्र आदि एवं उपदेशात्मक ग्रंथों में योगीन्द्र के परमात्म प्रकाश, योगसार; मुनि रामसिंह का पाहुडदोहा, सुप्रभाचार्य का वैराग्यसार, माहेश्वरसूरि की संयममंजरी आदि अनेक ग्रंथ द्रष्टव्य हैं। रामकथा से सम्बंधित अपभ्रंश साहित्य प्राकृत एवं संस्कृत भाषा के समान ही जैन विद्वानों ने अपभ्रंश भाषा में भी रामकथा का गुम्फन किया है। आश्चर्य तो यह है कि अपभ्रंश भाषा में जितने भी रामकथा विषयक ग्रंथ उपलब्ध हुए हैं वे सब जैनमतावलम्बी कवियों द्वारा ही प्रणीत हैं। तीन दशक पूर्व जो अपभ्रंश भाषा में लिखे गये रामकथात्मक ग्रंथ जैन भण्डारों में पड़े हुए थे वे जिज्ञासु अध्येताओं के श्लाघ्य प्रयत्नों से सम्प्रति प्रकाश में आये हैं। अपभ्रंश में रामकथा सम्बंधी तीन ग्रंथ विशेष महत्वपूर्ण हैं। इनमें से दो स्वयंभूदेवकृत पउमचरिउ अथवा रामपुराण (8वीं शती ई.) एवं रइधू रचित पद्मपुराण अथवा बलभद्रपुराण (15वीं शती ई.) विमलसूरि की परम्परा के अन्तर्गत आते हैं और पुष्पदन्तविरचित महापुराण (10वीं शती ई.) गुणभद्र परम्परा में परिगणित किया जाता है। स्वयंभू अपभ्रंश के वाल्मीकि हैं। इनकी तीन रचनाएँ पउमचरिउ, रिट्ठनेमिचरिउ और स्वयंभूछन्द उपलब्ध होती हैं। इनका 'पउमचरिउ' अपभ्रंश का रामकथा विषयक प्रथम विशालकाय महाकाव्य है । यह जैन रामायण है । इसमें 90 संधियाँ, 1296 कड़वक तथा 12000 श्लोक हैं। यह पाँच काण्डों- विद्याधरकाण्ड, अयोध्याकाण्ड, सुन्दरकाण्ड, युद्धकाण्ड और उत्तरकाण्ड में विभक्त है। स्वयंभू के पउमचरिउ की रचना प्रौढ़ एवं प्रांजल है। इतनी सर्वगुणसम्पन्न काव्य-रचना भाषा की प्रारम्भिक स्थिति में सम्भव नहीं। अत: ऐसा ज्ञात होता है कि स्वयंभू से पूर्व अपभ्रंश काव्य परम्परा उन्नत थी। स्वयं स्वयंभू ने भी अपने पूर्व के भद्र, चतुर्मुख आदि कवियों का उल्लेख किया है किन्तु उनकी रचनाएँ उपलब्ध नहीं हैं। स्वयंभू पउमचरिउ की रचना में आचार्य रविषेण से प्रभावित हुए हैं। इनकी द्वितीय रचना 'रिट्ठणेमिचरिउ' है जो महाभारत की कथा का जैन रूप प्रस्तुत करती है। 'स्वयंभूछन्द' में प्राकृत और अपभ्रंश के छन्द दिये गये है।' स्वयंभू के बाद अपभ्रंश के द्वितीय महाकवि पुष्पदंत हैं। इनकी 'तिसट्ठिमहापुरिसगुणालंकार', 'णायकुमारचरिउ' एवं 'जसहरचरिउ' तीन कृतियाँ प्राप्त होती हैं। तिसट्ठिमहापुरिस नामक रचना रामकथा से सम्बन्धित है। इस पौराणिक महाकाव्य में 63 शलाकापुरुषों, 24 तीर्थंकर, 12 चक्रवर्ती, 9 नारायण, 9 प्रतिनारायण एवं 9 बलभद्रों का वर्णन किया गया है। इसके द्वितीय भाग-उत्तरपुराण में 69 से 79 सन्धियों में रामकथा वर्णित है। पुष्पदन्त ने अपनी रामकथा में स्वयंभू से पृथक् गुणभद्र के उत्तरपुराण का अनुकरण किया है। इनकी द्वितीय रचना 'णायकुमारचरिउ' (नागकुमारचरित) है। इस ग्रंथ की रचना का उद्देश्य पंचमी उपवास का फल बतलाना है। 'जसहरचरिउ' (यशोधरचरित) कवि की अन्तिम रचना है।" इसकी कथा अत्यंत लोकप्रिय है। कवि के एक अन्य कोश ग्रन्थ का उल्लेख मिलता है पर यह रचना अनुपलब्ध है।

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