Book Title: Apbhramsa Bharti 1997 09 10
Author(s): Kamalchand Sogani, Gyanchandra Khinduka, Gopichand Patni
Publisher: Apbhramsa Sahitya Academy
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अपभ्रंश भारती - 9-10
भयानक रस के अनुभाव
भयानक रस वीर और रौद्र रसों का पोषक है। शत्रुओं, कायरों का इधर-उधर बिखर जाना, पलायन करना आदि इस रस के अनुभाव हैं ।
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काव्य में युद्धवर्णन के प्रसंग में इन अनुभावों का सटीक प्रयोग युद्ध-स्थल की भयानकता को दर्शाता है- ‘रणस्थल में कोई भट अपने शरीर को पसारे पड़ा था, जिसके अवयव मुद्गर के प्रहार से आहत होने पर भी विकृत नहीं हुए थे। उसके सुदृढ़ लकुटियुक्त हाथ को देखकर काक-समूह पास में नहीं आता था । कोई भट आँखों को भयानकता से फाड़े हुए पड़ा था। उसे जीवित समझकर सियार भयभीत हो रहा था।' 28
काक का समीप न आना, सियार का भयभीत होना आदि अनुभाव युद्धक्षेत्र की भयानकता को बतलाकर भयानक रस की अनुभूति कराते हैं ।
युद्धक्षेत्र में शोणित नदी, छत्र का तैरना, शृगाल, चील, गिद्ध, कौओं का मंडराना, मांसपिण्डों पर मक्खियों का भिनभिनाना, हाड़ों व धड़ों से युक्त विस्तृत भूमि” आदि का वर्णन भी मन में भयानकता, वितृष्णा और ग्लानि को जागृत करने में सक्षम है।
वीभत्स रस के अनुभाव
अप्रिय, अपवित्र और अनिष्ट वस्तु को देखने-सुनने से मन में जुगुप्सा या अरुचि -सी होती है । अतः ये वीभत्स रस के विभाव हैं तथा पात्रों को आँखें बंद करने, नाक-भौं सिकोड़ने, थूकने आदि से उसका बोध होता है अतः ये अनुभाव हैं 130
काव्य में संसार, शरीर, भोगों से अरुचि जगानेवाले वीभत्स रस का प्रयोग हुआ है जो वैराग्योत्पादक है पर उसमें अनुभाव अव्यक्त है । विवाहोपरान्त रात्रि में जंबूकुमार विद्युच्चर की कथा के प्रत्युत्तर में वैराग्य कथा सुनाता है।
बनारस नगरी का राजा युद्धार्थ जाता है। उसके अभाव में विरहाग्नि को शान्त करने के लिए रानी विभ्रमा अपनी दासी से सौन्दर्यशाली युवक चंग (सुनार - पुत्र) को बुलवाती है। संयोग से उसी समय विजयी होकर राजा वापिस आ जाता है तब रानी चंग को बाहर निकालने के सारे मार्ग अवरुद्ध जानकर भयभीत हो उसे अत्यन्त दुर्गन्धयुक्त पुरीषकूप (विष्टाकूप) में डाल देती है । 31
यहाँ दुर्गन्धयुक्त विष्टा विभाव है, आँख- नाक बन्द करना अव्यक्त अनुभाव है । यह जुगुप्सा स्थायी भाव जगाकर वीभत्स रस की अनुभूति कराता है ।
भीषण युद्ध के परिणामस्वरूप वहाँ का परिदृश्य ( 6.8.6-8, 6.9.8-9 ) भी ग्लानि उत्पन्न करता है पर वहाँ भी अनुभाव व्यक्त नहीं हुए 1
करुण रस के अनुभाव
प्रियजन, प्रियवस्तु का वियोग होने पर छाती पीटना, रुदन करना आदि करुणरस के अनुभाव हैं। वीर कवि ने इन अनुभावों के प्रयोग द्वारा प्रसंग को अत्यन्त मर्मस्पर्शी बनाया है । भवदत्त एवं