Book Title: Apbhramsa Bharti 1997 09 10
Author(s): Kamalchand Sogani, Gyanchandra Khinduka, Gopichand Patni
Publisher: Apbhramsa Sahitya Academy
View full book text
________________
अपभ्रंश भारती - 9-10
75 कथाओं को सुनाकर उनका प्रतिकार करने में सफल हो जाते हैं। सभी विराग कथाओं के उपसंहार में निदर्शित चिन्तन अनुभाव बन शान्त-रस की निष्पत्ति में सहायक बन पड़े हैं। __संसार से विरक्त जम्बूकुमार गुरुवर्य मुनि सौधर्म का अनुग्रह प्राप्त कर मुनिदीक्षा ग्रहण करते हैं, केशों को उखाड़ देते हैं, निसंग वृत्ति और इंद्रियों का दमन करते हैं, 44 बारहविध तप करते हैं और अन्त में मोक्ष प्राप्त करते हैं । मोक्ष-प्राप्ति के पूर्व तक की ये सारी प्रवृत्तियाँ अनुभाव हैं। इसी प्रकार जम्बूकुमार की चारों वधुओं, उनके माता-पिता, विद्युच्चर, आदि के द्वारा दीक्षा ग्रहणकर संयम धारण करना, तप करना, परीषहों को सहना और अन्त में संन्यास धारण करना आदि सभी शान्त रस के अनुभाव हैं। इन अनुभावों का कलात्मक संयोजनकर महाकवि ने शम स्थायी भाव को मार्मिक अभिव्यक्ति प्रदान की है और सहृदय को शान्तरस के सागर में निमग्न करने का सफल प्रयास किया है। __ इस प्रकार कवि वीर ने जम्बूसामि चरिउ में सशक्त, सटीक, स्वाभाविक एवं हृदयस्पर्शी अनुभावों का संयोजन कर पात्रों के रत्यादि भावों को अनुभूतिगम्य बनाने में अद्भुत कौशल का प्रदर्शन किया है। उनके द्वारा सामाजिक को पात्रों की रत्यादि परिणत-अवस्था का अविलम्ब बोध होता है । इसे उसका स्वकीय रत्यादि भाव तुरन्त उद्बुद्ध हो कर उसे शृंगारादि रस से सराबोर कर देता है।
1. जयोदय महाकाव्य परिशीलन, पृष्ठ-225-226, प्रकाशक - श्री दि. जैन धर्म प्रभावना
समिति एवं सकल दिगम्बर जैन समाज, मदनगंज-किशनगढ़।
2. उद्बुद्धकारणैः स्वैः सर्वैर्बहिर्भाव प्रकाशयन्। लोके यः कार्यरूपः सोऽनुभावः ___ काव्यनाट्ययोः॥ - साहित्य दर्पण, 3.132 3. अनुभावनमेवम्भूतस्य रत्या देः समनन्तरमेव रसादिरूपतया भावनम् । वही, वृत्ति 3.132 4. साहित्यदर्पण विमर्श, हिन्दी व्याख्या, पृष्ठ-201, डॉ सत्यव्रत सिंह, चौखम्बा, विद्याभवन,
चौक, वाराणसी। 5. अभिज्ञान शाकुन्तल, 2.12 । 6. जयोदय महाकाव्य परिशीलन, पृष्ठ-226 । 7. जंबूसामि चरिउ 4,17, 5-11, 16-20, कवि वीर, सं. डॉ. विमलप्रकाश जैन, भारतीय
ज्ञानपीठ प्रकाशन, दिल्ली। 8. वही 4.19, 11-151 9. वही 2.15, 6-151