Book Title: Apbhramsa Bharti 1997 09 10
Author(s): Kamalchand Sogani, Gyanchandra Khinduka, Gopichand Patni
Publisher: Apbhramsa Sahitya Academy
View full book text
________________
85
-
अपभ्रंश भारती
9-10
का कमल था और प्राकृत काव्य एवं गीत विषयों में सुप्रसिद्ध था, संदेश रासक की रचना ant ''18
I
'रासक' की कथा - अन्तर्गत आए नगर - नामों में विजय नगर एवं खंभात के अलावा अन्य तीन नगरों के नाम इस प्रकार हैं- सामोरु, तपन तीर्थ और मुल्तान। 'विजय नगर' को मुनिजी ने जैसलमेर राज्य के अन्तर्गत माना है" और 'खंभात' तो गुजरात का सुप्रसिद्ध व्यापारिक नगर है ही । 'सामोरु' को संस्कृत टीकाकारों ने मुल्तान नगर बताया है।2° मुल्तान का प्राचीन नाम कश्यपपुर था फिर उसका नाम हंसपुर पड़ा फिर भगपुर और इसके बाद साम्बपुर। अतः 'सामोरु' साम्बपुर है, जो मुल्तान का पूर्व नाम रहा है। 21 मुल्तान (मूल स्थान) तपन तीर्थ - अर्थात् आदित्य तीर्थ के रूप में प्रसिद्ध रहा है और किसी समय यहाँ के सूर्य मंदिर की विशेष ख्याति रही है । यह चन्द्रभागा (चिनाब ) नदी के तट पर अवस्थित है । अतः सामोरु, मूलस्थान (मुल्तान) एवं तपनतीर्थ एक ही हैं। इसमें कोई संशय नहीं है ।
अपभ्रंश में रासक- परम्परा की इस रचना (संदेश - रासक) में रचनाकाल का अभाव है। अतः इसकी रचना कब हुई, इस संबंध में भी विद्वानों के भिन्न-भिन्न मत हैं । जहाँ पुरातत्त्वाचार्य मुनि जिनविजयजी संदेश - रासक के कर्त्ता अद्दहमाण को मुहम्मद गोरी के आक्रमण से किंचित् पूर्वकाल का, ईसा की 12 वीं शताब्दी का कवि मानते हैं, 22 वहाँ महापंडित राहुल सांकृत्यायन ने अपनी 'हिन्दी काव्य-धारा' में इनको 11 वीं शती का कवि माना है। 23 आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी 'हिन्दी साहित्य का आदिकाल' में इनका समय 12 वीं तथा 13 वीं शती ई. निश्चित् करते हैं 124 श्री विश्वनाथ त्रिपाठी भी मुनिजी के विचार से सहमत हैं।25 डॉ. अम्बाप्रसादजी सुमन ने भी उन्हें 12 वीं शती ई. के आस-पास का कवि माना है।26 श्री अगरचन्द नाहटा ने उक्त मंतव्यों के विपरीत संदेश - रासक को सं. 1400 वि. के आस-पास की रचना होना बतलाया है 27 अतः यह तथ्य भी विचारणीय है। अब उसी पर विचार किया जा रहा है।
इतना तो निश्चित् है कि संदेश रासक की रचना सं. 1465 वि. के पूर्व हो चुकी थी, क्योंकि इस संवत् में जैन साधु लक्ष्मीचन्द ने इस पर संस्कृत में टिप्पणी लिखी थी।28 प्राकृत के सुप्रसिद्ध ग्रंथ 'वज्जालग्ग' पर रत्नदेव गणि ने सं. 1393 में एक संस्कृत टीका लिखी थी। इस टीकाग्रंथ में अनेक गाथाएँ आचार्य हेमचन्द्र रचित और संदेश- रासक के लेखक अद्दहमाण रचित सम्मिलित हैं । 29 इससे स्पष्ट है कि संदेश - रासक की रचना सं. 1393 से पूर्व हो चुकी थी ।
डॉ. हजारीप्रसादजी द्विवेदी ने एक अन्य प्रमाण अपने 'हिन्दी-साहित्य' नामक ग्रंथ में दिया है, जो अधिक निर्णायक माना जा सकता है। उन्होंने निर्दिष्ट किया है कि हेमचन्द्र सूरि ने अपने प्रसिद्ध ग्रंथ 'हेम-शब्दानुशासन' में संदेश - रासक का पद्य उद्धृत किया है।30 'सिद्ध हैम' का रचना - काल सं. 1192 मान्य है । अत: इस समय से पूर्व ही 'रासक' की रचना हो गई थी।
'संदेश - रासक' में मुल्तान (मूल स्थान) का वर्णन एक बड़े और समृद्ध हिन्दू-तीर्थ के रूप में हुआ है। हिन्दू तीर्थ के रूप में उसकी यह प्रसिद्धि वहाँ स्थित मार्तण्ड मंदिर के कारण थी । इस मंदिर को सर्वप्रथम मुहम्मद बिन कासिम ने विध्वस्त किया था, किन्तु कुछ कालोपरान्त