Book Title: Apbhramsa Bharti 1997 09 10
Author(s): Kamalchand Sogani, Gyanchandra Khinduka, Gopichand Patni
Publisher: Apbhramsa Sahitya Academy
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अपभ्रंश भारती - 9-10 कन्या होकर परपुरुष का वरण करती है वह क्या बड़ी होने पर ऐसा करने से विरत हो जायेगी। इन आठों ही बातों में जो मूढ मनुष्य विश्वास करता है लौकिक धर्म की भाँति
वह शीघ्र पग-पग में अप्रिय परिणाम प्राप्त करता है।० . 12. अकेला भी सिंह अच्छा, मृगसमूह अच्छा नहीं। अकेला भी मृगलांछन (चंद्रमा)अच्छा,
परन्तु लांछनरहित तारासमूह अच्छा नहीं। रत्नाकर अकेला ही अच्छा, विस्तारवाला नदियों का समूह अच्छा नहीं। अकेली आग अच्छी, परन्तु गिरिवर और वृक्षों से सहित
वन-समूह अच्छा नहीं। सुंदरकाण्ड 1. शरणागत का आना, बंदी को पकड़ना, स्वामी का कार्य तथा मित्र का परिग्रह, इन कठिन
प्रसंगों में जो संघर्ष नहीं करता वह शत-शत जन्मों में भी शुद्ध नहीं हो सकता। युद्धकाण्ड 1. अपहरण की हुई भी दूसरे की स्त्री संसार में अपनी नहीं होती। सज्जन भी यदि प्रतिकूल
चलता है तो वह काँटा है, शत्रु भी यदि अनुकूल चलता है तो वह सगा भाई है क्योंकि
दूर उत्पन्न भी दवाई शरीर को रोग से बाहर निकाल फेंकती है। 2. चोर, जार, सर्प, शत्रु तथा अग्नि, इन चीजों की जो मनुष्य उपेक्षा करता है वह विनाश को
प्राप्त होता है । 3. जो प्रणाम करते हुए शत्रु को मारता है वह क्षत्रिय कुल में आग लगाता है। उत्तरकाण्ड 1. वास्तव में मृत्यु उसी की होती है जो अहंकार में पागल है तथा जीवदया से दूर होता है,
जो व्रत तथा चरित से हीन होता है; दान तथा युद्धभूमि में जो दीन होता है; जो शरणागत और बंदीजनों की गिरफ्तारी में, गाय के अपहरण में, स्वामी का अवसर पड़ने पर, मित्रों के संग्रह में, अपने पराभव में तथा दूसरे के दुःख में काम नहीं आता, ऐसे मनुष्य के लिए
रोया जाता है26 2. देवताओं, श्रमणों तथा ब्राह्मणों को कभी पीड़ा नहीं पहुँचानी चाहिये ।" 3. धोखा देनेवाला व्यक्ति अवश्यम्भावी रूप से दुःख पाता है । 4. क्रोध समस्त अनर्थों का मूल है। संसारावस्था का भी मूल क्रोध है। क्रोध दया-धर्म के
विनाश का मूल है। क्रोध घोर पाप कर्मों का मूल है। तीनों लोकों में मृत्यु का कारण क्रोध
है। नरक में प्रवेश का कारण भी क्रोध है। क्रोध सभी जीवों का शत्रु है। 'पउमचरिउ' में प्रयुक्त उपमा-विधान'
'पउमचरिउ' में अनेक स्थलों पर कई उपमाएँ प्रयुक्त की गई हैं जो किसी भी संदर्भ को एक विशिष्ट अर्थ तो प्रदान करती हैं साथ ही वर्णन को आलंकारिक सौन्दर्य भी प्रदान करती हैं।