Book Title: Apbhramsa Bharti 1997 09 10
Author(s): Kamalchand Sogani, Gyanchandra Khinduka, Gopichand Patni
Publisher: Apbhramsa Sahitya Academy
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अपभ्रंश भारती - 9-10
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(2) हनुमान नंदन वन में सीता को कहते हैं – राम तुम्हारे वियोग में उसी प्रकार क्षीण
हो गये हैं जैसे चुगलखोरों की बातों से संज्जन पुरुष, कृष्णपक्ष में चंद्रमा, सिद्धि की आकांक्षा में मुनि, खोटे राजा से उत्तम देश, मूर्खमण्डली में कवि का काव्य विशेष,
मनुष्यों से वर्जित सुपंथ क्षीण हो जाता है।" (3) भ्रमरसमूह तथा वियोग-दुःख से संतप्त परमेश्वरी सीता इस प्रकार प्रतीत हो रही हैं
मानो समस्त नदियों के मध्य गंगा नदी हो। हनुमान ने राम द्वारा भेजी गई अँगूठी नीचे गिरा दी। हर्ष की पोटली की भाँति वह
जानकी की गोद में आ गिरी। (5) जिस प्रकार प्रथमा विभक्ति शेष विभक्तियों से घिरी रहती है उसी तरह मंदोदरी रावण
की दूसरी पत्नियों से घिरी हुई थी। (6) राम ने, वट-पेड़ के वरोह की भाँति विशाल अपनी भुजाओं से हनुमान का आलिंगन
कर लिया। युद्धकाण्ड (1) अंगद राम से कहता है - हे देव, रावण संधि नहीं करना चाहता, उसी प्रकार, जिस
प्रकार 'अभी' शब्द के ईकार की स्वर के साथ संधि नहीं होती। (2) ईर्ष्या से भरकर निशाचर ने हनुमान के ऊपर तीर साधा। हनुमान का ध्वज उस तीर
से बिंधकर इस प्रकार धरती पर गिरा मानो आकाश रूपी स्त्री का हार टूट कर गिर
पड़ा हो। (3) रावण ने जब अपनी चंद्रहास तलवार निकाली तो ऐसा लगा मानो हजारों सूर्यों का उदय
हो गया हो। (4) रावण की सेना ने राम की सेना का रुख परिवर्तित कर दिया मानो तूफानी हवाओं ने
समुद्र-जल की दिशा बदल दी हो। (5) भरत स्वयं जिनमंदिर में गया, जो शाश्वत मोक्ष का स्थान हो, तथा जो ऐसा प्रतीत हो
रहा था मानो स्वर्ग से कोई विमान ही आ खडा हो। उत्तरकाण्ड (1) सुग्रीव भामण्डल तथा भय के मध्य उसी प्रकार स्थित हो गया जिस प्रकार उत्तर भारत
तथा दक्षिण भारत के मध्य विंध्याचल स्थित है।67 (2) समूची युद्धभूमि और सेना राम तथा रावण के तीरों से उसी प्रकार संतप्त हो उठी जिस
प्रकार खोटे मार्ग पर जाती हुई पुत्रियों से दोनों कुल पीड़ित हो उठते हैं । युद्धभूमि में लक्ष्मण अपना रथ मध्य में करके इस प्रकार स्थित हो गया मानो राम की विजय ही आकर खड़ी हो गयी हो। शोकाकुल रोती-विसूरती हुई स्त्रियों से घिरा हुआ रावण ऐसा जान पड़ता था मानो नव-मेघमालाओं से विंध्याचल सब ओर से घिरा हुआ हो।