Book Title: Apbhramsa Bharti 1997 09 10
Author(s): Kamalchand Sogani, Gyanchandra Khinduka, Gopichand Patni
Publisher: Apbhramsa Sahitya Academy
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अपभ्रंश भारती - 9-10
87 उपयोग किया गया है। दुर्भाग्य से इस प्रति में आरम्भ के दो पत्र नहीं हैं। इसका लि. काल सं. 1608 है और इसमें मूलपाठ एवं उसकी संस्कृत-छाया दी हुई है, जिसे प्रकाशित संस्करण में 'अवचूरी' नाम दिया है। प्रस्तुत संस्करण में अलीगढ़ के डॉ. राम सुरेश त्रिपाठी से प्राप्त इस रचना के एक पत्र (11वां) का उपयोग भी किया गया है (दे. उक्त
संस्करण, भूमिका पृ. 72-76)। 4. सम्मेलन-पत्रिका, भाग 51 सं. 1-2, पृ. 187-88 । 5. वहीं, 'संदेश-रासक के रचयिता अब्दुर्रहमान' नामक लेख, पृ. 185-194 । 6. संदेश-रासक, हिन्दी ग्रंथ रत्नाकर, बम्बई, प्रस्तावना, पृ. 131। 7. वही, प्रस्तावना, पृ. 58। प्रतीत होता है कि इस पाठ-भेद पर विचार के समय द्विवेदीजी
के मन में अब्दुर्रहमान शब्द की विद्यमानता प्रभावी थी, तभी वे इस पाठ के द्वारा कवि को मुस्लिम-धर्म का सिद्ध कर सके। अन्यथा इस पाठ की निरर्थकता स्वतः स्पष्ट है।
इससे ऐसा अर्थ नहीं निकाला जा सकता । 8. प्रथम तो अपभ्रंश काव्यकार के रूप में कोई मुसलमान कवि हुआ ही नहीं, फिर भी यदि
एक बार को यह मान भी लिया जाए कि 'अद्दहमाण' इस्लाम धर्मावलम्बी ही था, तो तब इस संबंध में इतना ही कहा जा सकता है कि वह किसी भारतीय उच्च श्रेणी से संबंधित था और जिसने किसी कारणवश धर्मान्तरण कर इस्लाम धर्म स्वीकार कर लिया था अर्थात् वह नव धर्मान्तरित मुसलमान था। इसी कारण उसमें भारतीय-संस्कार विद्यमान थे और
उसका तत्कालीन भाषा-ज्ञान परिपुष्ट था। 9. संदेश-रासक, प्रथम प्रक्रम छंद सं. 3 व 4। 10. प्राकृत शब्द महार्णव(पाइय सद्द महण्णव) कोश में उक्त शब्द। 11. मनु ने यज्ञीय देश का लक्षण यह बताया है कि वहाँ कृष्णसार मृग स्वाभाविक रूप से
विचरते हैं- 'कृष्णसारस्तु चरित मृगो पत्र स्वभावतः। स ज्ञेयो यज्ञियो देशो म्लेच्छ
देशस्ततः परः।। - मनुस्मृति-अध्याय 3/231 12. (क) उदीच्यः पश्चिमोत्तर । प्रत्यन्तो म्लेच्छ देशः ..... (2.1.6) (ख) चातुर्वर्ण्य-व्यवस्थानं यस्मिन् देशे न विद्यते।
म्लेच्छ देशः स विज्ञेयः आर्यावर्तः ततः परम् ॥ 13. ओझा-निबन्ध-संग्रह, भाग 1 पृ.13 । 14. संदेश-रासक (हि.ग्र.र.का. बम्बई-संस्करण), प्रस्तावना, पृ.11-12 । 15. सम्मेलन-पत्रिका, भाग 51 सं. 1-2, पृ.187-189 । 16. पंजाब प्रांतीय हिन्दी साहित्य का इतिहास, पृ.101-21 17. संदेश-रासक (हि.ग्र.र.का. बम्बई-सं.) भूमिका, 78 एवं पा. टि.-41.