Book Title: Apbhramsa Bharti 1997 09 10
Author(s): Kamalchand Sogani, Gyanchandra Khinduka, Gopichand Patni
Publisher: Apbhramsa Sahitya Academy
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अपभ्रंश भारती - 9-10
पर वैज्ञानिकता के साथ विचार किया गया है और संस्करण के अंत में डॉ. भायाणी ने रचना का एक शब्द-कोश भी दिया है, जिसमें शब्द - व्युत्पत्ति एवं अर्थ देने का प्रयास है। इस प्रकार रचना के महत्त्वानुरूप ही इस संस्करण को अधिकाधिक रूप में उपयोगी बनाने का प्रशंसनीय प्रयास किया गया ।' संदेश - रासक' का एक अन्य संस्करण श्री विश्वनाथ त्रिपाठी द्वारा संपादित हिन्दी-ग्रंथ रत्नाकर कार्यालय, बम्बई से प्रकाशित हुआ है। इस संस्करण के प्रकाश में आने का श्रेय डॉ. हजारीप्रसादजी द्विवेदी को है । यह संस्करण भी कुछ नवीन सामग्री के प्रकाश में उपयोगी बनाने का एक सुन्दर प्रयास है। उक्त दोनों संस्करणों के अतिरिक्त 'संदेश रासक' का पाठ डॉ. दशरथ ओझा तथा डॉ. दशरथ शर्मा द्वारा संपादित ग्रंथ 'रास और रासान्वयी काव्य' (प्र. नागरी प्रचारिणी सभा, वाराणसी) के अन्तर्गत भी प्रकाशित हुआ है। इस प्रकार इस रचना के सम्प्रति तीन प्रकाशित संस्करण प्राप्त हैं ।
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कवि का विशेष 'वृत्त' अज्ञात है, क्योंकि वह अपने विषय में अधिक मुखर नहीं है। उसने ‘संदेश-रासक' के प्रारम्भ में 'कर्तार - स्तुति' के पश्चात् अपना अति संक्षिप्त परिचय मात्र इस रूप में दिया है
पच्चास पहूओ पुव्व पसिद्धो य मिच्छ देसोत्थि तह विसए संभूओ आरद्द मीर सेणस्स ॥ 3 ॥ तह तओ कुल कमलो पाइय कव्वेसु गीय विसयेसु अद्दहमाण पसिद्धो संनेह रासयं रइयं ॥ 4 ॥
प्रथम छंद का अर्थ उसके 'टिप्पनक' के आधार पर, जिसका भाव यह है कि 'पश्चिम दिशा में म्लेच्छ नाम देश है, जो पूर्व में बहुत प्रसिद्ध है । वहाँ मीरसेन नामक जुलाहा (आरद्द) उत्पन्न हुआ' किया गया है और अधिकांशतया विद्वानों ने भी बिना कोई विशेष विचार किए, उसे स्वीकार कर तथाकथित अब्दुर्रहमान के पिता का नाम 'मीर सेन' तथा उसे जुलाहा जाति का मान लिया है, किन्तु डॉ. शैलेश जैदी ने अपने अर्थ-चिन्तन से उक्त छंद के अर्थ संबंध में कवि - परिचय विषयक तथ्यात्मक नवीन उद्भावनाएँ की हैं। जिनके आधार पर अब्दुर्रहमान का परिचय इस प्रकार है
'पश्चिम दिशा की पृथ्वीवाला प्राचीन काल से प्रसिद्ध 'मिसहद (मिच्छद + एस + त्थि मिच्छदेसोत्थि) नामक देश है। उस देश में 'मीरहुसेन' का ( मीर सेणस्स) पुत्र उत्पन्न हुआ । अत: डॉ. जैदी के अनुसार कवि को जुलाहा जाति का माना जाना, गलत है। वह सैयद जाति के मुसलमान थे, क्योंकि 'मीर' शब्द सैयद जाति का द्योतक है। उनके पिता का नाम 'मीरहुसेन' था, जो मुहम्मद गोरी के साथ भारत आए थे और उन्हें अजमेर का दारोगा नियुक्त किया गया था। यहीं पर उनका देहान्त सन् 610 हिजरी अर्थात् 1213 ई. में हुआ था । गोरी और अपने पिता के भारत आगमन के समय अर्थात् 589 हि. (1193ई.) में संभवत: तभी अब्दुर्रहमान का भी भारत में आना हुआ था। भारत आगमन के समय अनुमानत: उनकी आयु 22-23 वर्ष की रही होगी और इस प्रकार डॉ. जैदी के विचार से उनका जन्म सन् 1170 ई. के आस-पास
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