Book Title: Apbhramsa Bharti 1997 09 10
Author(s): Kamalchand Sogani, Gyanchandra Khinduka, Gopichand Patni
Publisher: Apbhramsa Sahitya Academy
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अपभ्रंश भारती - 9-10 श्रृंगार रस के अनुभाव
ऊपर शृंगार रस के अनुभावों का वर्णन किया जा चुका है, इनका प्रयोग कवि ने जंबूसामि चरिउ में नायक-नायिका के रूप-वर्णन और मिलन के प्रसंग में किया है । बंसत ऋतु के आगमन पर नागरिकों के युगल की उद्यान-क्रीड़ा का चित्रण देखिए -
कोई मुग्धा अपने (प्रणय) कार्य के लोभी धूर्त से प्रणय क्रुद्ध होकर मुँह फेर लेती है। (तब वह कहता है)तुम्हारे मुँख से शतपत्र (कमल) की भाँति करके झपटती हुई भ्रमर-पंक्ति को देखो। यह सुनते ही भग्नमान होकर वह दयिता तुरन्त (प्रेमी के) कंठ से लग जाती है। कोई (नायक) मुग्धा की प्रशंसा करता है- तुम्हारे सुन्दर नेत्रों में नीलोत्पल की शंका करके भ्रमर झपट रहे हैं, इस बहाने से नेत्रों को झांप कर नव वधू का मुख चूम लेता है। कोई नायक एक बाला से कहता है- मैं अपने तिलक से तुझे तिलक लगाऊंगा और अपना मस्तक प्रिया के मस्तक पर रखकर उसे छल कर कपोलों पर नखचिह्न बनाता हुआ कांता के अधरों को दाँतों से काट लेता है। किसी ने कहा - हे दीर्घनयना! तूने (निष्कलंक) मुख पर कस्तूरी का तिलक लगाकर उसे चन्द्रमा के समान (सकलंक) क्यों कर लिया? किसी स्त्री के प्रिय ने कहा - यह तो सारा (प्रपंच) महिलाकृत है। उस उद्यान में कामिनियों के काम को बढ़ाते हुए जंबूकुमार किसी कामिनी से कहने लगे - हंसों ने तुझसे गमन का अभ्यास किया, कलकंठी ने तुमसे कोमल आलाप करना जाना, कमलों ने तुमसे चरणों से नाचना सीखा, तरुपल्लवों ने तुम्हारी हथेलियों का विलास सीखा और बैलों ने तुम्हारी भौहों से बांकापन सीखा। इस प्रकार ये सब तुम्हारे शिष्य भाव को प्राप्त हुए हैं।
यहाँ पर प्रेमोन्मत्त नायक-नायिका की प्रवृत्तियाँ - मुख, कपोल, अधरों का पारस्परिक चुंबन, आलिंगन, नखच्छेद, नायिका-प्रशंसा आदि - सभी शृंगार रस के अनुभाव हैं, जो उनके हृदयगत अनुराग को अभिव्यक्त करते हैं।
उद्यान क्रीड़ा के अनन्तर जलक्रीड़ा के प्रसंग में प्रेमी युगल की सुरतावस्था का मनोरम चित्रण हुआ है। इसमें नारी के आंगिक सौन्दर्य का सूक्ष्म चित्रण, रमणी की कटिवस्त्र संभालने, कम्पनशील नितम्ब को स्थिर करने की चेष्टा रूप अनुभावों का रमणीय उपमा और उत्प्रेक्षामय वर्णन हुआ है जो उनके रतिभाव और प्रेम की उत्कटता का द्योतक है।
जंबूकुमार की होनेवाली वधुओं चार श्रेष्ठि कन्याओं के उपमा, उत्प्रेक्षा से लदे नख-शिख वर्णन (4.13), विवाहोपरान्त पद्मश्री आदि नव वधुओं की काम चेष्टाओं (8.16), वेश्यावाट के चित्रण (9.12) में रमणीय और मादक अनुभावों की संयोजना हुई है, जो उनके रतिभाव को दर्शाने में पूर्णरूपेण समर्थ हैं। ___ जब भवदेव को अपने गृहस्थ जीवन के अग्रज किन्तु अब विरक्त मुनि भवदत्त के दर्शन करने का सौभाग्य मिलता है, तब उनकी प्रेरणा से वह मुनि बन उनके ही संघ में सम्मिलित हो जाता है, पर अपनी नवविवाहिता पत्नी के आकर्षण को और अतृप्त भोगेच्छाओं को विस्मृत नहीं कर पाता। वह निरंतर मन में भार्या के यौवन, शारीरिक सौन्दर्य के चिंतन में मग्न रहता