Book Title: Apbhramsa Bharti 1997 09 10
Author(s): Kamalchand Sogani, Gyanchandra Khinduka, Gopichand Patni
Publisher: Apbhramsa Sahitya Academy

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Page 71
________________ 56 अपभ्रंश भारती - 9-10 (1) सगुन- विचार और पुत्र होना । ( पहली संधि) (2) गर्भ धारण करने पर सोहला गवाना और रानी को दोहला होना। (पहली संधि) (3) उन्मत्त हाथी के सरोवर में उतरने पर रानी का तैरकर प्राण बचाना। (पहली संधि) (4) सूखे हुए उपवन में रानी के पहुँचने से उसका हरा-भरा होना । (पहली संधि) (5) उपवन के हरे-भरे होने का समाचार सुनकर माली का आगमन और उसे घर लिवा जाना । (पहली संधि) (6) माली की पत्नी का उसे देखकर ईर्ष्या से भर उठना । (पहली संधि) (7) श्मशान में पुत्रोत्पत्ति । (पहली संधि) (8) नर - कपाल की आँखों और मुख में से बाँस का विटप निकलना। (दूसरी संधि) (9) भविष्य - सूचना । (दूसरी संधि) (10) विद्याधर के घर डिंडिभी बजने से राक्षस द्वारा राजा की कन्या के अपहरण की सूचना । (दूसरी संधि) (11) जलपूर्ण घड़ा हाथी की सूंड पर रखना और संभाव्य राजा पर उसका उँडेलना । (दूसरी संधि ) (12) श्मशान के बीच बैठे कुमार पर जल उँडेलना । (दूसरी संधि) (13) तत्क्षण खेचर की विद्याएँ लौटना । (दूसरी संधि) (14) युद्ध भूमि में पद्मावती का आना और पिता-पुत्र का परिचय कराना। (तीसरी संधि) (15) कर्म-वश सुवेग का हाथी बनना। (पाँचवीं संधि) (16) करकंड की सेना पर मदोन्मत्त हाथी द्वारा आक्रमण होना । (पाँचवीं संधि) (17) राजा का सामना करने पर हाथी का अदृश्य होना। (पाँचवीं संधि) (18) पूर्व-जन्म के अभिशाप से विषधर का हाथी होना। (पाँचवीं संधि) (19) साँप - मेंढ़क की लड़ाई देखकर कुमार द्वारा मांस का टुकड़ा डाला जाना और उन दोनों का मनुष्य बनना । (सातवीं संधि) ( 3 ) प्रेमाख्यानों में प्रयुक्त- इन कथानक - रूढ़ियों का प्रयोग लौकिक प्रेमाख्यानों के कल्पना - प्रसूत प्रसंगों में उन्हें अधिक संभाव्य बनाने के लिए किया जाता है, यथा - (1) गंगा की धार में एक पिटारी में रखी हुई कन्या को देखकर प्यार उत्पन्न होना । (पहली संधि)

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