Book Title: Apbhramsa Bharti 1997 09 10
Author(s): Kamalchand Sogani, Gyanchandra Khinduka, Gopichand Patni
Publisher: Apbhramsa Sahitya Academy

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Page 77
________________ अपभ्रंश भारती - 9-10 हुआ। राजा वहाँ पहुँचा और देखा कि एक हाथी ने सूंड़ से जल चढ़ाकर, कमल अर्पित किया और प्रदक्षिणा करके चला गया (4.6.10 ) । राजा वहाँ फिर सरोवर के पास गया, सरोवर ने राजा का अभिवादन किया (4.7.8 ) । हिन्दी के मध्ययुगीन सूफी- प्रेमाख्यानों में भी ( पद्मावतजायसी) नायिका के पहुँचने पर मानसरोवर अपनी प्रसन्नता प्रकट करता है (मानसरोवर खंड ) । और तुलसी के 'रामचरित मानस' में भी श्रीराम के सेतु-बंधन के समय समुद्र उपहार लेकर उपस्थित होता है (लंकाकाण्ड ) । राजा तुरन्त बामी को खुदवाता है। वहाँ एक सिंहासन और उसमें एक गाँठ निकली। राजा ने उसे भी तुड़वाया, फलतः एक तीव्र जलधार निकली, जिससे राजा बड़ा दुःखी हुआ कि मैंने इस धर्म-निलय को तुड़वाया। तभी एक देव प्रकट होता है और कहता है कि अब तक मैंने इसकी रक्षा की अब राजन् ! तू कर । यह कहकर वह अंतर्धान हो जाता है। इस कथानक रूढ़ि के प्रयोग से कथा में गति तो आती ही है, कहानी का रूप ही बदल जाता है। प्रारम्भ में जो कथा लौकिक कहानी की भाँति प्रारम्भ होकर बढ़ रही थी, वह अब धार्मिक कहानी बन जाती है। इस धार्मिक कथा रूढ़ि का यही प्रयोजन है। रोचकता का पुट तो स्वतः ही आ गया है। और इसी प्रसंग में कथाकार को अन्य पात्रों के पूर्व- -जन्म की कथा कहने का अवसर मिल जाता है। तदुपरि मूल-कथा प्रेम-कहानियों की तरह बढ़ने लगती है। 62 इसी प्रकार प्रथम संधि के आठवें कड़वक में रानी पद्मावती रात में स्वप्न देखती है और राजा उसका शकुन विचार करके पुत्र उत्पन्न होने की बात कहता है। राज्य में सौभाग्योत्सव (सोहला ) मनाया जाता है। आज भी लोक में गर्भावस्था के अंतराल में सोहला मनाया जाता । परन्तु तभी रानी को दोहला होता है। वह कहती है कि मैं बरसाती वातावरण में आपके साथ हाथी पर बैठकर पट्टन का भ्रमण करूँ। अगर यह इच्छा पूरी नहीं हुई तो मैं मर जाऊँगी। गर्भावस्था में प्रायः नारी की सभी इच्छाएँ पूरी की जाती हैं, ताकि संतान कुंठित न हो। इसमें उसके पति का विशेष योगदान रहता है। मनोवैज्ञानिक तथा लौकिक दृष्टि से यह तथ्य बड़ा व्यावहारिक है । राजा इस कामना को पूरी करता है। वर्षा का मौसम न होने पर भी मेघकुमार देव का चिन्तन करने से जल-बिन्दुओं की वर्षा होने लगती है (1.11.8)। एक दीप्तिवान् हाथी पर सवार होकर दोनों चलने लगते हैं कि हाथी मदोन्मत्त होकर भागने लगता है (1.12.10 ) । यह देखकर रानी राजा के लिए चिंतित होती है और उसे प्रजा के लिए उतर जाने की कहती है। एक डाल से लगकर राजा कूद जाता है। 'राणएण तं सुणेवि, रुक्ख लंग्गि उल्ललेवि' । किन्तु, रानी को लेकर वह हाथी घनघोर जंगल में स्थित जलाशय में घुस जाता है। रानी तैरकर किनारे आकर एक उद्यान में पहुँचती है, जो उजाड़ पड़ा था। रानी का पैर पड़ते ही वह हरा-भरा हो जाता है और फलनेफूलने लगता है ता दिट्ठ उ उववणु ढंकरूक्ख मयरहियु णीरमु णाइँ मुक्खु । तहिं रुक्खहो तले वीसमइ जाम दणवणु फुल्लिउ फलिउ ताम ॥ 2.14 ॥

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