Book Title: Apbhramsa Bharti 1997 09 10
Author(s): Kamalchand Sogani, Gyanchandra Khinduka, Gopichand Patni
Publisher: Apbhramsa Sahitya Academy
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अपभ्रंश भारती - 9-10 (19) बछेड़े का आकाश में उड़ना। राजा को प्यास लगने पर समुद्र के पास आना।
(आठवीं संधि) (20) समुद्र की अनेक कन्याओं में से रत्नलेखा के साथ सुए के कहने पर राजा का विवाह
करना। (आठवीं संधि) (21) सुआ, घोड़ा, राजा-रानी चारों का सलिलयान से चलना; उसका एक द्वीपांतर से लगना,
और रात हो जाना। (आठवीं संधि) (22) पहरा देकर रात गुजारना; परन्तु राजा के पहरे में चोरों द्वारा घोड़े-सहित सलिलयान __ का हर ले जाना। (आठवीं संधि)
सुए का लकड़ी काटकर नाव बनाने को कहना, तीनों का उस पर चढ़ना, परन्तु बंधन
टूट जाने पर तीनों का बिछुड़ जाना। (आठवीं संधि) (24) सुए का पेड़ पर चढ़ना और राजा-रानी का अलग-अलग होकर अलग-अलग द्वीपों
में पहुँचना। (आठवीं संधि) (25) अंत में तीनों का मिलना। (आठवीं संधि)
इस प्रकार और भी अन्य अनेक कथानक-रूढ़ियाँ इसमें प्रयुक्त हुई हैं। परन्तु, इन सभी को विभाजक रेखा खींचकर एक ही वर्ग के अंतर्गत नहीं रखा जा सकता; वे परस्पर एक-दूसरे वर्ग में आ ही जाती हैं । लौकिक कहानियों की अनेक कथानक-रूढ़ियाँ प्रेमाख्यानों की रूढ़ियों में आ जाती हैं और धार्मिक-रूढियों को लोक-विश्वास के कारण इन दोनों से पथक रखना नहीं हैं। फिर भी, इनमें से कुछेक का हम विस्तृत निरूपण करेंगे और देखेंगे कि इनके प्रयोग से कथानक को कहाँ गति मिलती है और कहाँ रोचकता के साथ सौन्दर्य की अभिव्यक्ति हुई है। इसी में कथाकार की कला-कुशलता का परिचय मिलता है।
कथा के प्रारम्भ में ही चम्पानगरी का धाड़ीवाहन राजा कुसुमपुर जाने पर एक सुन्दरी कन्या को देखकर रीझ जाता है। पूछने पर ज्ञात होता है कि वह नगर के माली की पोषित कन्या है। माली संपूर्ण वृत्तांत कह सुनाता है कि वह उसकी पत्नी को गंगा की धार में एक पिटारी में रखी हुई मिली, जिसमें स्वर्णमयी अंगुली की मोहर लगी थी और लिखा था कि यह राजदुहिता है तथा राजा वसुपाल की पद्मावती नाम की पुत्री है। राजा यह जानकर बड़ा प्रसन्न हुआ और माली को प्रचुर धन देकर उसके साथ विवाह कर लिया (1.7.10) लौकिक प्रेम-कथाओं की यह प्रचलित कथा-रूढ़ि है। कभी-कभी लोक-निन्दा के भय से संतान को इस प्रकार पिटारी में रखकर नदी में बहा दिया जाता है अथवा पिटारी में ढ़क-दाबकर किसी के द्वार पर या अन्य स्थान पर जनशन्य वातावरण देखकर छोड़ दिया जाता है। ऐसे शिशु बहुधा बहुत सुन्दर देखे जाते हैं, और भाग्यशाली भी। कुन्ती ने कर्ण को लोक-लज्जा के भय से ही नदी में बहाया था
और कबीर की माँ ने भी तालाब के किनारे छोड़ दिया था। इस प्रकार की घटनाएँ लोक-जीवन में होती रहती हैं और वहीं से लोक-कहानियों का प्रतिपाद्य बन जाती हैं । इससे कहानी में विशेष रोचकता का समावेश हो जाता है।