Book Title: Apbhramsa Bharti 1997 09 10
Author(s): Kamalchand Sogani, Gyanchandra Khinduka, Gopichand Patni
Publisher: Apbhramsa Sahitya Academy
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अपभ्रंश भारती
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9-10
सयदलणीलंचल सोह दिंति, जलखलहलरसणादामु लिंति ।
मंथरगति लीलए संचरति, वेसा इव सायरु अणुसंरति । (2.12)
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अर्थात्, सुरसरि (गंगानदी) खिले कमल जैसे मुख से हँस रही थी । घूमती हुई भँवरें उसकी अलकों जैसी थीं। लहरों में तैरती मछलियाँ उसकी मनोहारिणी चंचल आँखों के समान थीं। सीपयों के पुट उसके होठ । मुक्ता-पंक्ति उसकी दन्तावली थी । चन्द्रमा के प्रतिबिम्ब से युक्त जल में, जैसे वह दर्पण में अपना मुँह निहारती - सी प्रतीत होती थी । तटवर्त्ती वृक्षों की कम्पित शाखाओं से वह नृत्य करती-सी मालूम पड़ती थी । बलखाती जल की लहरियाँ उसकी त्रिवली जैसी शोभित थीं। नीलकमल उसके नीलाम्बर के समान सुशोभित थे। जल के तरंग उसके
सूत्र जैसे थे। जिस प्रकार नायिका नायक का अनुसरण करती है, उसी प्रकार गंगा लीलापूर्वक . मन्थर गति से संचरण करती हुई सागर की ओर प्रवाहित हो रही थी ।
प्रस्तुत अवतरण में मनोरमगत्वर चाक्षुषबिम्ब ( डाइनेमिक ऑप्टिकल इमेज) का विधान हुआ है । यथानिर्मित वस्तुबिम्ब में दृश्य के सादृश्य पर रूपविधान तो हुआ ही है, उपमान, रूपक या अप्रस्तुत के द्वारा भी संवेदन या तीव्र अनुभूति की प्रतिपत्ति के माध्यम से अतिशय मोहक नारी-बिम्ब का हृदयावर्जनकारी निर्माण हुआ है। रंग-परिज्ञानमूलक प्रस्तुत इन्द्रियगम्य बिम्ब अतिशय कला - रुचिर है । वस्तुतः काव्यकार ने गंगा (नदी) के एक बिम्ब में अनेक बिम्बों का मनोज्ञ समाहार या मिश्रण उपस्थित किया है।
'सुदंसणचरिउ' में काव्यकार निर्मित उपमान, उत्प्रेक्षा और रूपकाश्रित बिम्बों का बाहुल्य है, जिन्हें हम भाव जगत् के एक अनुभूत महार्घ सत्य की रूपात्मक अभिव्यक्ति कह सकते हैं। उदाहरणस्वरूप, मगधदेश, राजगृह, राजा श्रेणिक, विपुलाचल, अंगदेश, चम्पानगरी, वनवृक्षावली, कपिल ब्राह्मण, सूर्यास्त, रात्रि, सूर्योदय, कामिनी कपिला, रानी अभया, सरोवर आदि से सन्दर्भित बिम्ब भाषिक और आर्थिक विभुता से आपातरमणीय हो गये हैं ।
बिम्ब-विधान के सन्दर्भ में मुनिश्री नयनन्दी की काव्यभाषा की भूमिका महत्त्वपूर्ण है । काव्यकार की भाषा सहज ही बिम्ब-विधायक है । काव्यकार मुनिश्री की काव्य-साधना मूलत: अपभ्रंश भाषा की साधना का ही उदात्त रूप है । वाक् और अर्थ के समान प्रतिपत्ति की दृष्टि से मुनिश्री नयनन्दी की भाषा की अपनी विलक्षणता है। काव्यकार - कृत समग्र बिम्ब - विधान सहजानुभूति की उदात्तता का भव्यतम भाषिक रूपायन है 1
कुल मिलाकर, 'सुदंसणचरिउ' के प्रणेता द्वारा अनेक शब्दाश्रित और भावाश्रित बिम्बों का विनियोग किया गया है, जिनमें भाषा और भाव, दोनों पक्षों का सार्थक समावेश हुआ है। इस काव्य में प्राप्य कतिपय मोहक बिम्बोद्भावक भाषिक प्रयोग यहाँ समेकितरूप में उपन्यस्त है
महि - महिलए णियमुहि णिम्मविउ णाइँ कवोलपत्तु तिलउ ।
पृथिवी-रूप महिला ने अपने मुँह पर कपोलपत्र और तिलक्र अंकित किये (1.3);