Book Title: Apbhramsa Bharti 1997 09 10
Author(s): Kamalchand Sogani, Gyanchandra Khinduka, Gopichand Patni
Publisher: Apbhramsa Sahitya Academy
View full book text
________________
अपभ्रंश भारती
9-10
अक्टूबर अक्टूबर
-
1997, 1998
35
अपभ्रंश के महाकवि त्रिभुवन : एक परिचय
डॉ. संजीव प्रचंडिया 'सोमेन्द्र '
-
अपभ्रंश के महाकवि त्रिभुवन 8वीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध के कवि माने जाते हैं। इनके पिता कविवर स्वयंभू 8वीं शताब्दी के पूर्व के एक प्रतिष्ठित कवि थे । इन्होंने ( स्वयंभू ने) अपभ्रंश में 'राम- काव्य' की रचना की। इसलिए कविवर 'स्वयंभू' को अपभ्रंश का बाल्मीकि भी कहा जाता है । अत: कविवर त्रिभुवन को काव्य- कौशल और पाण्डित्य, उत्तराधिकार में प्राप्त हुआ । इनके पिता स्वयंभू तथा बाबा मारुतिदेव दोनों ही मँजे हुए कवि थे। ये उत्तर के रहनेवाले थे किन्तु कालान्तर में दक्षिण के राष्ट्रकूट राज्य को चले गए।
'रामकाव्य' की जो परम्परा महाकवि स्वयंभू ने रची थी उसे उनके सबसे छोटे पुत्र महाकवि त्रिभुवन ने आगे बढायी। उन्होंने फुटकर रचना कम लिखी। अतः स्वतंत्र रूप से कोई पुस्तक न लिखकर पिता के काव्य अर्थात् पउमचरिउ (विशेषकर ) ग्रंथ में ही वृद्धिंगता प्रदान की। कवि स्वयंभू ने 'पउमचरिउ' अर्थात पद्मचरित (रामचरित) को 83 संधियों तक लिखकर छोड़ दिया था जिसे आपने सात संधियाँ और जोड़कर 90 संधियों तक पहुँचा दिया। उनका मत था कि पिताश्री ने जो 'रामचरित' की रचना की है वह पूर्ण नहीं है । उसमें उन्हें कुछ कमी प्रतीत हुई। कमी यह लगी कि ‘पउमचरिउ' की परि समाप्ति जैनधर्म ( श्रमणधर्म) के अनुसार नहीं हुई है। उनका यह अभिप्राय था कि मर्यादा पुरुषोत्तम राम जिनधर्म में दीक्षित नहीं हुए हैं अतः उनका परिनिर्वाण शेष है । उनके कर्म क्षेत्र में क्षय की स्थिति नहीं हुई है। पूर्व भवों की कथा (जन्म'जन्मान्तरों की कथा) का कृति में अभाव है। इतनी वृहद कमी को सक्षम व सुयोग्य पुत्र ने अपनी