Book Title: Apbhramsa Bharti 1997 09 10
Author(s): Kamalchand Sogani, Gyanchandra Khinduka, Gopichand Patni
Publisher: Apbhramsa Sahitya Academy
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अपभ्रंश भारती - 9-10
स्वयंभू ने राम का चित्रण अत्यंत स्वाभाविकता के साथ किया है। उन्होंने राम के उत्कर्ष हेतुओं के साथ-साथ उनके अपकर्ष हेतुओं को भी उतनी ही तन्मयता से अभिव्यंजित किया है। उनके राम न ही देवकोटि के हैं तथा न ही कोई महान् आदर्श । वे वास्तविकता के धरातल पर खड़े सामान्य मानव हैं । स्वयंभू के राम मानवीय पौरुष के प्रतिनिधि हैं । राम का मनुष्यरूप में चित्रण मानव समाज के लिए गौरव का विषय है। स्वयंभू ने 8वीं शताब्दी में ही इहलोक के मानव को 'राम रूप' में प्रतिष्ठित करके मानव समाज को गौरवान्वित किया।
स्वयंभू के राम, जहाँ एक ओर सीता को कुटी में न पाकर सामान्य मानव की भाँति करुण क्रंदन करने लगते हैं तथा सम्पूर्ण सृष्टि को अपने आँसुओं से नम कर देते हैं वही राम कर्तव्यपालन की श्रृंखला में बंधन में बँधे मनुष्य की भाँति निष्करुण भाव से उसी सीता को न केवल कटु शब्दबाणों द्वारा आहत करते हैं वरन् उस पतिव्रता नारी को पाषाणहृदयी होकर अग्नि को भी समर्पित कर देते हैं। राम के चरित्र के इन दोनों ही पक्षों का स्वयंभू ने अत्यंत मार्मिक तथा हृदयस्पर्शी चित्रण किया है।
स्वयंभू ने सीता का चित्रण भी अत्यंत कुशलतापूर्वक किया है। जो सीता इतनी सुकुमार है कि दर्पण में नारद का प्रतिबिम्ब देखते ही मूर्च्छित हो जाती हैं वही सीता अग्निपरीक्षा के उपरांत राम द्वारा क्षमायाचना के उपरांत भी वापस आयोध्या नहीं जाती हैं तथा दीक्षा ग्रहण कर लेती हैं । एक सामान्य मानव की भाँति राम सीता के लिए (अग्निपरीक्षा से पूर्व) अत्यंत अशोभनीय तथा निंदनीय शब्द प्रयुक्त करते हैं। सीता प्रत्युत्तर में संयत स्वर में नारीत्व की प्रतिष्ठा करती हैं तथा नर-नारी अंतर को स्पष्ट करती हैं । नारी जाति की सहनशीलता के सम्बन्ध में वे कहती हैं कि इसमें न तो समाज का दोष है तथा नं किसी व्यक्तिविशेष का दोष है वरन् स्त्री होना ही अपने आप में सबसे बड़ा दोष है। संयत स्वर में कही गयी यह बात कितनी मार्मिक तथा सारगर्भित है और साथ ही निष्करुण, मिथ्या दंभी पुरुष समाज पर एक तीव्र कुठाराघात भी है। अग्निपरीक्षा के समय राम के इस व्यवहार पर प्रजागण भी सीता के पक्ष में थे तथा राम की भर्त्सना करते हुये कहते हैं - राम निष्ठुर, निराश, मायारत तथा अनर्थकारी और दुष्टबुद्धि हैं। पता नहीं सीतादेवी को इस प्रकार होम करके वह कौन सी गति पायेंगे। अग्निपरीक्षा के उपरांत सीता द्वारा स्वकेशलोंच करना सर्वाधिक मार्मिक प्रसंग है जो स्वयंभू की सच्ची संवेदनशीलता तथा उत्कृष्ट अभिव्यंजना का परिचायक है।
स्वयंभू उदात्त विचारधारा के पोषक थे, स्वयंभू में धार्मिक कट्टरता नहीं थी। राम का मानवीय रूप में चित्रण भी उनकी उदात्तता का ही द्योतक है।
स्वयंभू के राम का यह मानवीय रूप लोकजीवन की निधि है। स्वयंभू ने लोकजीवन का चित्रण अत्यंत सजीवता के साथ किया है। 'पउमचरिउ' में स्वयंभू ने अनावश्यक रूप से न ही कहीं पांडित्य प्रदर्शन किया है तथा न ही उसे अलंकारयुक्त करने का प्रयास किया है। कथा को स्वाभाविक एवं सहज रूप से 'सामण्ण गामिल्ल भास' में निबद्ध कर दिया है जो स्वयंभू के