Book Title: Apbhramsa Bharti 1997 09 10
Author(s): Kamalchand Sogani, Gyanchandra Khinduka, Gopichand Patni
Publisher: Apbhramsa Sahitya Academy
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अपभ्रंश भारती - 9-10
25 46. डॉ. हरीश, आदिकालीन हिन्दी साहित्य शोध, पृ. 23, साहित्य भवन लि., इलाहाबाद। 47. कवि ने राम, रावण, सीता, विभीषण, हनुमान, लक्ष्मण आदि सभी पात्रों को जैनशिल्प
में ढाला है तथा मौलिकता प्रस्तुत की है.... राम की सीता के प्रति कठोरता, सीता का पातिव्रत्य, अग्निपरीक्षा, रावण-सीता सम्बन्ध तथा सीता की जिन-धर्म में दीक्षा आदि की
बातें मैलिक हैं। - वही, पृ. 24। 48. डॉ. नामवर सिंह, हिन्दी के विकास में अपभ्रंश का योग, 1991 संस्करण, पृ. 194,
लोकभारती प्रकाशन, इलाहाबाद। 49. श्री राहुल सांकृत्यायन, सरस्वती पत्रिका, सितम्बर 1955 अंक, 156, इलाहाबाद। 50. तुलसी की कृति में प्राय: छंदों की रूपरेखा अपभ्रंश चरितकाव्यों के समान ही है। उसका
मूलस्रोत अपभ्रंश के इन चरितकाव्यों को माना जा सकता है। पद्धड़िया-घत्ता शैली का
ही परिवर्तित रूप दोहा-चौपाई शैली को कहा जा सकता है। 51. डॉ. संकटाप्रसाद उपाध्याय, महाकवि स्वयंभू, पृ. 219, भारत प्रकाशन मंदिर, अलीगढ़। 52. डॉ. हरिवंश कोछड़, अपभ्रंश साहित्य, पृ. 46, भारती साहित्य मंदिर, दिल्ली।