Book Title: Apbhramsa Bharti 1997 09 10
Author(s): Kamalchand Sogani, Gyanchandra Khinduka, Gopichand Patni
Publisher: Apbhramsa Sahitya Academy
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अपभ्रंश भारती - 9-10
28. एउ वयणु भणेप्पिणु सुह-समिद्ध। सइं हत्थें भरहहों पटु वद्ध ।। 24, 10 29. तो अवहेरि करेवि विहीसण। चडिउ महग्गए तिसगविहूसण ॥
सीय वि पुष्फ-विमाणे चउविय। पट्टणे हट्ट सोह दरसाविय ।। 42.6 30. तं णिसुणेवि सीय परिओसिय। 'साहु साहु भो' एम पधोसिय॥
'सुहउ-सरीर-वीर-वल-मद्दहों। सच्चई भिच्चु होहि वलहद्दहों'॥
पुणु-पुणु एम पसंस करन्तिएँ। परिहिए अंगुत्थलउ तुरन्तिएं। 50.6 31. डॉ. नामवरसिंह, हिन्दी के विकास में अपभ्रंश का योग, 1991 संस्करण, पृ. 195,
लोकभारती प्रकाशन, इलाहाबाद । 32. वही। 33. वही, पृ. 1971 34. डॉ. कामिल वुल्के, रामकथा, द्वितीय संस्करण 1962, पृ. 366, हिंदी परिषद् प्रकाशन,
प्रयाग वि. वि., प्रयाग। 35. सिर चहुआना भार । राम लीला छिग गाइय॥
बालमीक रिषराज। किसन दीपायान धारिय॥ छं 586, सं. 2 36. दशावतारा भरणं कण्ठे रक्षार्थमाहितम्।
अनन्य रक्षरक्षमात्मानशंसतस्य रक्षितु ॥ श्लो. 43, अ. 2 ॥ 37. डॉ. विपिन बिहारी त्रिवेदी, पृथ्वीराजरासो, 1964 संस्करण, पृ. 78, पारूल प्रकाशन,
लखनऊ। 38. डॉ. विपिन बिहारी त्रिवेदी, राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त अभिनंदन ग्रंथ, कलकत्ता
1959 ई., पृ. 677-79। 39. इस वलहद्द पुराणे, वुहियण विंदेहि लद्ध सम्माणे। 40. डॉ. हरिवंश कोछड़, अपभ्रंश साहित्य, पृ. 118, भारती साहित्य मंदिर, दिल्ली। 41. जं मुउ जडाइ हिय जणय-सुअ। धाहाविउ उब्भा करेवि भुअ॥
हउं कहिं हरि कहिं घरिणि कहिं घरु कहिं परियणु छिण्णउ।
भूय-वलित्व कुडुम्बु जगे हय-दइवे कह विक्खिण्णयु ॥ 39.2 42. जइ वि कुलग्गयाउ णिखप्णउ महिलउ होंति सुठु णिल्लज्जउ । 83.8 43. पुरिस विहीन होन्ति गुलवंत वि। तियहें ण पत्तिज्जन्ति मरुव वि। 83.8 44. णर-णरिहि एवड्डउ अंतरु। मरणें वि वेल्लि ण मेल्लइ तरुवरु॥ 83.9 45. णिट्ठरु णिरासु मायारउ दुक्किय-गारउ कूर-मइ।
णउ जाणहुँ सीय वहेविणु रामु लहेसइ कपण गइ।। 83.9
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