Book Title: Apbhramsa Bharti 1997 09 10
Author(s): Kamalchand Sogani, Gyanchandra Khinduka, Gopichand Patni
Publisher: Apbhramsa Sahitya Academy

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Page 25
________________ 10 अपभ्रंश भारती - 9-10 साथ अयोध्या लौटकर राजकार्य सँभालते हैं । अग्नि-परीक्षा में सफल होने के उपरांत सीता भूमि प्रवेश नहीं करती हैं वरन् एक आर्यिका के पास जाकर जैनधर्म में दीक्षा ग्रहण करती हैं। राम तथा लक्ष्मण का अंत भी भिन्न रूप में दिखाया गया है। एक दिन दो स्वर्गवासी देव लक्ष्मण को विश्वास में लेकर कहते हैं कि राम की मृत्यु हो गयी, यह समाचार सुनकर शोकाकुल लक्ष्मण की मृत्यु हो जाती है तथा लक्ष्मण नरक जाते हैं । लक्ष्मण की मृत्यु के पश्चात् राम लक्ष्मण की अंत्येष्टि करके जैनधर्म में दीक्षित हो जाते हैं तथा साधनोपरांत मोक्ष प्राप्त करते हैं। इसी प्रसंग पर कथा समाप्त होती है। विमलसूरि के पश्चात् रविषेणाचार्य ने वि.सं. 733 में संस्कृत भाषा में 'पद्मपुराण' की रचना की। यह कथा विमलसूरि कृत 'पउमचरिउ' से इतनी समानता रखती है कि इसे 'पउमचरिउ' का छायानुवाद कहा जाता है। गुणभद्र कृत 'उत्तरपुराण' (955 वि.सं.) की रामकथा का स्वरूप संक्षेप में इस प्रकार है - राजा दशरथ काशी देश में वाराणसी के राजा थे। राम की माँ का नाम सुबाला तथा लक्ष्मण की माँ का नाम कैकेयी था। भरत, शत्रुघ्न किसी अन्य देवी के पुत्र थे। सीता रावण की रानी मंदोदरी की पुत्री थी। ज्योतिषियों द्वारा सीता को विनाशकारिणी घोषित किये जाने के बाद रावण उन्हें एक मंजूषा में डालकर मारीच द्वारा मिथिला देश में गड़वा देता है । हल की नोक से उलझी मंजूषा बाहर निकाली गयी, उसमें से सीता निकली। सीता जनक को इस प्रकार प्राप्त हुई। जनक ने सीता को पुत्रीवत् पाला तथा कालांतर में राजा जनक अपने यज्ञरक्षक राम के साथ उनका विवाह कर देते हैं । राम तथा लक्ष्मण जनक की आज्ञा से वाराणसी में ही रहने लगे। राजा जनक ने रावण को अपने यज्ञ में निमंत्रित नहीं किया था, इस अपमान के कारण तथा नारद से सीता के रूप की प्रशंसा सुनकर रावण स्वर्णमृग का रूप धारण करके सीताहरण कर लेता है। इस हरण में मारीच उसकी सहायता करता है। हरण के समय राम-सीता वाराणसी के समीप चित्रकूट वाटिका में विचरण कर रहे थे। गुणभद्र की कथा में हनुमान सीता-उद्धार हेतु राम की सहायता करते हैं । इस कथा में लक्ष्मण रावण का सिर काटते हैं। राम दिग्विजय के उपरान्त लक्ष्मण के साथ अयोध्या लौटते हैं। इसमें राम की आठ हजार तथा लक्ष्मण की सोलह हजार रानियाँ बताई गई हैं। इस कथा में लक्ष्मण की मृत्यु किसी असाध्य रोग के कारण होती है, लक्ष्मण की मृत्यु से राम अत्यंत विक्षुब्ध हो जाते हैं । लक्ष्मण की मृत्यु के उपरांत राम लक्ष्मण के पुत्र पृथ्वीसुंदर को राजपद तथा सीता के पुत्र अजितंजय को युवराज पद पर अभिषिक्त करके जैनधर्म में दीक्षित होकर मोक्ष प्राप्त करते हैं । सीता भी अनेक रानियों के साथ जैनधर्म में दीक्षित होकर मोक्ष प्राप्त करती हैं। गुणभद्र ने अपनी कथा में सीता-स्वयंवर, धनुषयज्ञ, कैकेयी-हठ, राम-वनवास, पंचवटी, दंडकवन, जटायु, सूर्पनखा, खरदूषण, सीता-अपवाद आदि प्रसंगों का उल्लेख नहीं किया है। सीता-जन्म विष्णुपुराण के ढंग का है।' इस कथा में दशरथ को वाराणसी का राजा बताया गया है. यह प्रसंग बौद्ध जातक कथा के समान है।

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