Book Title: Apbhramsa Bharti 1997 09 10
Author(s): Kamalchand Sogani, Gyanchandra Khinduka, Gopichand Patni
Publisher: Apbhramsa Sahitya Academy
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अपभ्रंश भारती - 9-10
अक्टूबर - 1997, अक्टूबर - 1998
अपभ्रंश के जैन कवि और संत कबीर के दोहों में
संयम की भूमिका
- डॉ. सूरजमुखी जैन
संसार का प्रत्येक प्राणी जीना और सुख से जीना चाहता है। वह अहर्निश सुख के साधनों को जुटाने के लिए बेचैन रहता है। मानव ने सुख प्राप्ति के लिए पंखे, कूलर, एयरकंडीशनर, हीटर, कम्प्यूटर, रेल, वायुयान आदि अनेक साधन जुटाये। सुरक्षा के लिए अनेक प्रकार के अस्त्र-शस्त्र ही नहीं परमाणु बम, मिसाइल आदि अनेक घातक उपकरणों का अविष्कार किया। किन्तु उसे सुख-शान्ति नहीं मिली, उसका जीवन सुरक्षित न हो सका, अपितु ज्यों-ज्यों साधन प्राप्त होते गये उसकी अतृप्ति, उसकी विक्षिप्तता, उसकी विह्वलता बढ़ती गयी। आज बालक, वृद्ध, युवा, निर्धन, धनी, स्त्री, पुरुष सभी का जीवन तनावग्रस्त है। अखिल विश्व में भय और आतंक का वातावरण बना हुआ है। उसका एकमात्र कारण है - असंयम, बढ़ती हुई अनियमित इच्छाएँ।
आत्मिक अभ्युत्थान और समाज के विकास में संयम की अहं भूमिका है। संयम के द्वारा ही समाज में सबका जीवन निरापद हो सकता है और संयम के द्वारा ही जीव शाश्वत सुख - आत्मसुख को प्राप्त कर सकता है।