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अनुसन्धान-७५ (१ )
' अनुसन्धान' : एक अवलोकन
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मणिभाई प्रजापति
१. प्रस्तावना
गुजराती भाषामां जैन धर्म-दर्शन अने साहित्यना संशोधनने वरेल संशोधन-सामयिकनी आवश्यकताने पिछाणीने अपभ्रंश, प्राकृत, जूनी गुजराती अने संस्कृत भाषाओना प्रकाण्ड विद्वान, विश्वविश्रुत भाषाविज्ञानी अने संशोधक हरिवल्लभ भायाणीसाहेबे प्राकृत अने जैनसाहित्यनी प्रवर्तमान गतिविधिओनी जाणकारी व्यापक समुदायने सतत मळती रहे ते हेतुसर एक पत्रिका 'अनुसन्धान' एवा नामे प्रकाशित करवा माटे भारपूर्वक भलामण मुनिश्री शीलचन्द्रविजयजी महाराजने (हवे आचार्य श्री विजयशीलचन्द्रसूरिजी ) करतां आ बन्ने विद्वद्जनोना सम्पादकत्व हेठळ अनियतकालीन सामयिक 'अनुसन्धान 'नो प्रारम्भ १९९३मां करवामां आव्यो हतो, जे सतत आजपर्यन्त चालु रहेतां तेना ७४ अङ्को प्रकाशित थई चुक्या छे. भायाणीसाहेबनुं वर्ष २००० मां अवसान थया बादथी अर्थात् अङ्क १८ थी आचार्यश्री स्वयं 'अनुसन्धान' नुं सम्पादन करी रह्या छे, जेनुं प्रकाशन 'कलिकालसर्वज्ञ श्रीहेमचन्द्राचार्य नवम जन्मशताब्दी स्मृति संस्कार शिक्षणनिधि', अमदावाद द्वारा करवामां आवी रह्युं छे.
आचार्य श्रीए 'अनुसन्धान' शरु करवानुं हार्द स्पष्ट करतां नोंध्युं छे के : 'ऊहापोह ए शोध / अनुसन्धाननुं चालक बळ छे. कोई पण मुद्दा परत्वे 'आ आम ज छे' एवो एकान्त न सेवतां ते मुद्दा परत्वे मध्यस्थ, समतोल तथा साधार शोध / विमर्श चलाववो तेनुं नाम छे अनुसन्धान. 'अनुसन्धान' आ दृष्टिथी प्रगट थती पत्रिका छे'. आ ज वातने समर्थन पूरुं पाडतो पडघो 'अनुसन्धान' ना ध्यानमन्त्र 'मोहरिते सच्चवयणस्स पलिमंधू' (ठाणंगसूत्र ५२९) - 'मुखरता सत्यवचननी विघातक छे' मां संभळाय छे'. संशोधननी पायानी आ विभावना केन्द्रस्थाने राखीने 'अनुसन्धान' नुं कार्यक्षेत्र अने मर्यादा प्राकृत भाषा अने जैन साहित्य विषयक सम्पादन, संशोधन, माहिती वगेरे सुधी मर्यादित राखवामां आव्युं छे. आ पत्रिकाना अहीं उपर निर्देशित महत उद्देशने