Book Title: Anusandhan 1999 00 SrNo 15
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 12
________________ अनुसंधान-१५ .7 ॥२१॥ ॥२२॥ ॥२३॥ प्रसूनबुद्ध्या मिथुनान्यलीनाम् ॥२०॥ द्यूतेन दन्ता अपि भूपतीनांये पातितास्तैश्चिरसगृहीतैः । कपर्दिकानां कपटेन यस्यां कुन्दावदातैः कितवा रमन्ते वाल्लभ्यतो हिङ्गुल-यूषयन्त्रन्यासच्छलाद्यत्र न मन्त्रविक्तः(त्कः ?) । कुर्यात् कुहूकुंभकुचाकपोलश्रीकारिणी: कुङ्कुमपत्रभङ्गीः तस्याऽभवद्वासरवासवस्याऽवसानसन्ध्यावसरः सुमेध्यः । ध्यानादमुं क्षोभयितुं नु रागैरुत्पादितव्यापकदावशङ्कः तत्राऽरुणीभूतसमस्तभावे हारोऽपि गुञ्जाफलगुम्फकल्पः । काली मुखालीमविलोक्य कालक्षेपादुपालक्षि चलेक्षणाभिः व्योम व्यरोचिष्ट विचित्रचञ्चद्दीधित्यदभ्रस्फुरदभ्रसालम् । वाग्देवताविर्भवनोत्सवाय प्रत्यग्रपट्टांशुकमण्डपः किम् ? ॥२५॥ दीपादिषु स्वं क्षिपताऽऽतपस्वं पलायितुं वेद्मि दिनेन मुक्तः । राज्ञो दलं वीक्षितुमायदाभादस्ताचले शैखरिकः खरांशुः विष्णुं जगुः पर्वतमस्तकेऽज्ञास्तेनाऽस्तभूमीभृतिभानुदम्भात् । ॥२४॥ ॥२५॥ ॥२६॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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