Book Title: Anusandhan 1999 00 SrNo 15
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 68
________________ अनुसंधान-१५ • 63 कुरुदत्तसुउ बहुतवजुओ, चउबुद्धिनिधी अभड सुउ । तह मेघकुमर सेणिअसुतो, गुणरयणतवो विजए गतो ॥१११॥ सेणिअसुत तव संजमजुअ, विणूवेरा हल्ल-विहल्लया । गुणरयणा एगऽवतारया, विजयंतविमाणे ते गया ॥११२॥ (१९) ढाल-गुडी(अंबरथीति) जिन-गुरु रागिइ ततु, तिजीसरगि गयु सहसारिइ । एक अवतारीअ प्रणमीइं, सार्वनु(सर्वानुभूति अनिगारिइ ॥११३।। तेजोलेसि-गोसालीइ, बलिउ मुनि सुनक्खित्तो । अच्चुअसरग ते पामी, जिनगुरुभगतिसु जुत्तो ॥११४॥ वीरजिनौषधदायगो, धिन सीहो अनगारो । रेवतीगिह पडिलाभीउ, रडिउ रागि अपारो ॥११५॥ सालिभद्र धिन धनमुणी, जेहि तजी महारिद्धी । वैभारि अणसण गया, ते सरवारथसिद्धी ॥११६॥ रायरिसी जिन वीरना, चरम उदायी सीसो । केंवल वर मुगति गयु, प्रणमो सो निशिदीसो ॥११७॥ जंबू मुणी नवजोवणो, तिजी नारी बहु कोडी । गुणनिधि चरम ते केवली, मुगति गयु दस तोडी ॥११८॥ प्रभवो गुरु सिज्जंभवो, जसभद्दो संभूती । विजय भद्दबाहु गुरु, चउदसपूर्वी विभूती ॥११९।। शीत सही मुनि सुर थया, भद्रबाहु चुर सीसो । महागिरि गुरु सुहत्थी गुरु, जिनकलपादि जगीसो ॥१२०॥ नारिबत्तीसी अ जो तिजी, नलिणीगुलमविमाणि । कुमर अवंतीअ सुर थो, मुणि सीआलिअ खीणि ॥१२१॥ उक्तं च सोऊण गुणिज्जंतं, सुहत्थिणा नल(लि)णिगुम्ममज्झयणं । तक्कालं पव्वइओ, चइत्तु भज्झाउ बत्तीसं ॥१२२।। तिहिं जामेहि सिवाहि, अवच्चसहियाहिं सहिअउवसग्गो । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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