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अनुसंधान-१५ . 73
सखि आयो मास आसाढ किं जलहर उं नहीं रे २ । घोर घटा करी गाजइ किं नीर रेलइ मही रे २ । पावस पंथी गेह किं नीर रेलइ मही रे २॥ इणि रति छोडी धण' किं परदेशि कुण फिरइ रे २ ॥२॥ झिरमिर वरसई मेह किं श्रावण शरवलइ रे २ । नेह जगावइं जोर किं दुख ज कुण कलइ रे २ । प्रीतम प्राणाधार किं इम नवि कीजीइ रे २॥ पहिला प्रीत ज जोड किं छेह न दीजीइ रे २ ॥३॥ भादरवानी राति किं हुई विहरणि(विरहणि) समी रे २ । न सुहाई सोल शृंगार कि हूं विरहइं दमी रे २। सुहाली ए सेज कि अनल पर मुझ धखइ रे । हीर चीर पटकूल कि न सुहाइ प्रिउं पखइ रे २ ॥४॥ आसोई हती आश किं नवराति खेलस्युं रे २ । जिमाडिस प्रिउं हाथ स्युं हुं निज गेलस्युं रे २ । जेहस्युं बांध्या प्राण किं ते किम वीसरइ रे २ । सास पहिला तेह किं फिरी फिरी सांभरइ रे २ ॥५॥ आयो कार्तिक मास किं दीवाली सहू करइ रे २। खाजां लाडू सेव कि हरख मनमां धरइ रे २। प्रिउंडो नहीं मुझ घर किं विलपूं एकली रे ॥६॥ माननि मागसिर मास किं मन्मथ पीडई घणुं रे २। नाण्यो नेह लगार किं बार वरस तणो रे २। निसनेही एहवा पुरुष स्यो विश्वास एहनो रे २। वलती न पूछई स्वारथ पूरो तेहनो रे २॥७॥ पोसइ ते पूरव प्रीत किं पिउडां पालीइ रे २। आवी सिंचो नेहनीर किं दुखडं टालीइ रे २।
१. प्रिया ।
२.चोथी पंक्ति लेखनमां छूटी गई होय तेम जणाय छे.
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