Book Title: Anusandhan 1999 00 SrNo 15
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 103
________________ अनुसंधान-१५ .98 मूळे सं. १६७१मां आगरामां प्रतिष्ठित बे जिनबिंबो हालमां अमदावादसाबरमतीना रामनगरस्थित चिंतामणी पार्श्वनाथ जिनालयमां विराजे छे. तेमां एक आदिनाथजी छे, ने बीजा अजितनाथ भगवान छे. क्रमशः ते बे बिंबोनी शिखा पर कोतरेल अक्षरो आ प्रमाणे वंचाय छे : १. अकबर सुलत्राणां पातिशाह पुत्र पातिशाह श्रीजहांगीर सुलत्राणां विजय राज्ये ॥ २. पातिशाह श्री जहांगिर विजय राज्ये ॥ देखीती रीते ज, पोताना शहेनशाहनुं नाम आंकेल प्रतिमाना मस्तकनुं खण्डन करवानी, कोई मुस्लिम हिम्मत न ज करे. साबरमती-देरासरमां आ बिंबो लखनऊथी आणेलां छे, ते पण, प्रसंगोपात्त अहीं नोंदवू घटे. पांच पंक्तिनो कलश वाचक यशोविजय-रचित १२५-१५०-३५० गाथानां गंभीर स्तवनो जैन संघमां प्रसिद्ध छे, आदरपात्र पण. तेमां १२५ गाथानां स्तवनना अंते ४ पंक्तिनी एक कडी हरिगीत छंदमां आवे छे, जेने 'कळश' कहेवाय छे. ते आ प्रमाणे छे. "इम सकल सुखकर दुरित भयहर विमल लक्षण गुणधरो प्रभु अजर अमर नरिंद वंदित वीनव्यो सीमंधरो । निजनादतर्जित मेघगर्जित धैर्यनिर्जित मंदरो श्रीनयविजय बुध चरण सेवक जसविजय बुध जय करो ॥ आ कळश ज आजे सर्वत्र प्रसिद्ध ने प्रचलित छे. परंतु, एक प्रति हमणां नजरे चडी, जेमां आ कडी ४ना बदले ५ पंक्तिनी जोवा मळी. आ प्रति अमदावादना प्रतिष्ठित हठीसिंह केसरीसिंह परिवार-वर्तुलमां थयेल श्राविका 'रुखमणि बहेने' लखावेली होई, तेनो आधारस्रोत कोई जूनी पोथी ज हशे तेम मानवू ठीक लागे छे. अलबत्त, अहीं स्रोतने विशे कशी नोंध नथी. शक्य छे Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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