Book Title: Anusandhan 1999 00 SrNo 15
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

View full book text
Previous | Next

Page 85
________________ अनुसंधान - १५ • 80 ढाल १| नदि जमुना के तीर उडे दोय पंखीया - ए देशी ॥ धुर उववाई उपांग सूंणो तुंमें गणधरा सूत्रे रचि सुविशेष जे अर्थथी गणधरा । वर्णन सूत्र विचार जगती परिणांमनो भवि पूजो शुभ भाव आगम मन कांमनो ॥ १२॥ ढाल १ ॥ रायपसेणी उपांग भावें करी पूजीइं सूरियाभ सुर अधिकार कें भक्तिथी लीजीइं । राय प्रदेशी प्रश्ण कें चित्त धारी सिरें नमो रे नमो भवि प्रांणी दुजो उपांग सिरे ॥ १३॥ ढाल २ ॥ जीवाभिगम उपांग ए त्रीजुं पूजीइं प्रतिपति दश अध्ययन घणुं सुणी रीझीइं । जीवना भेद अनेक कह्या बहुश्रुत 'भणी कीजीइं जन्म कृतारथ सूत्र अर्थे भणी ||१४|| ढाल ३ ॥ उपांग चोथुं पन्नवणा मन धारीइं पद छत्रीस गुंणाकर अर्थ निरधारीइं । सिद्धांत के परम रस विचारीइं पूजी प्रणमी सूत्र ए अज्ञांन मति वारी || १५ | ढाल ४ ॥ पांचमुं जंबुदीवपन्नती दिल धरो क्षेत्र स्वरूप विचार उदार ते 'गुणें करो । जंबुद्वीपमां भाव कह्या जे जगधणी Jain Education International वंदो श्रुत शुभ भाव कें वांणि जिनतणी ॥ १६ ॥ ' ढाल ५ ॥ छट्टु उपांग 'जे सूरपन्नती श्रुतें भयं सूर्य तो इहां चार गणित गणीइं गण्युं । पाहुडा १ सत्तावन इहां मन आंणजो ए कालें अतीकठीण पूजी गुंण जांणजो ॥१७॥ ११ढाल ६ ॥ १. गुणी लाद । २. चौदमी पूजा लाद । ३. रहस्य लाद । ४. सूत्र अज्ञानता वा० लाद । ५. पनरमी पूजा लाद । ६. गुणकरो लाद । ७. सोलमी पूजा लाद । ८. ते लाद । ९. श्रुत भणुं लाद । १०. सतावीस आ. । ११. सत्तरमी पूजा लाद. | For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118