Book Title: Anusandhan 1999 00 SrNo 15
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

View full book text
Previous | Next

Page 71
________________ वा.यशोविजयप्रणीत शारदागीत सं. विजयशीलचन्द्रसूरि उपाध्याय श्रीयशोविजयजीनी एक गेय लघु स्तोत्र-रचना प्रस्तुत करतां आनन्द थाय छे. झूलणा छंदमां रचायेल आ गीत-रचना छे, जेमां माता शारदानी स्तुति थई छे. यशोविजयजीनो मुद्राक्षर 'ऐं' आना प्रारंभमां नथी, परंतु नवमा पद्यमां आवतु 'सुयशः' पद, कर्ता- स्पष्ट सूचन करे छे. आठमा पद्यमां 'कान्ति विजयस्मृति' एवो नामनिर्देश छे, ते परथी आ गीत कान्तिविजयजी माटे रचायुं होय एवी अटकळ थई शके. रचना पण प्रगल्भ छे. शारदागीतम्। प्रणमतानर्गलज्ञानसञ्जीविनी भारती सारतरभक्तियुक्त्या । बोधसंबोधितस्वीयपरिचारका चारुकान्ति तमश्चारमुक्त्या ॥१॥ प्रणम० वेदगर्भात्मजां गर्भितार्थस्फुर दृत्तवृत्तस्तुताम्लानवृत्ताम् । उद्यतान्तष्कृतिप्राज्ञमल्लानन मण्डपानीतकौशल्यनृत्ताम् ॥२॥ प्रणम० यत्प्रसत्त्या सतां मण्डलीमध्यगोऽ ___ साध्यविद्योमतैर्ग्रहः स्यात् । मानवो वर्णहीनोऽपि वर्णोच्छ्रित प्रोच्चवाग्मोहवृद्धीनिहन्यात् ॥३॥ प्रणम० चन्द्रिकाधौतशृङ्गारतारद्युतिः शुभ्रपक्षाधिरोहिण्यघानि । हस्तकृतपुस्तका कच्छपीवादन स्पष्टबुद्धिश्छिनत्त्यसलानि ॥४॥ प्रणम० १.अमतैः प्रतिपक्षैः मतैर्नयैश्चेति श्लेषः । २. विवर्णः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118