Book Title: Anusandhan 1999 00 SrNo 15
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 66
________________ अनुसंधान-१५ • 61 कालावेसिअपुत्तं आया, सामायिअ मुणि सीद्ध । कुंडरीक भाया पुंडरीओ, उपशमस्यूं व्रत लीध ॥८७॥ (१६) ढाल-राग मल्हार ............ .......... वंदति पहु देवानंदा । पीन पयोधर खीर झरंती, मातिन मनि आनंदा रे ॥८८॥ समवसरणि गिरि उग्यो देखती, प्रभु मुख पूनमचंदा रे । ऋषभदत्तमाहणस्यूं देखती, गोअममाइ मुणिंदा रे ॥८९॥ एकादश वर गणधर गिरुआ, चउद सहस यतींदा रे । वीर वदइ हम मातपिता ए, दीख भए सुखकंदा रे ॥१०॥ करकंडु दुमहो नमीराया, तह निग्गई (नगगई ?) नरिंदो रे । ए प्रत्येक मुनिवर सवि सीधा, सीधा प्रसन्नचंदा रे ॥११॥ वलकलचीरी अइमुत्तो मुनि, कुमरा केवलि जाया रे । लोहज्झो मुणि खुडुगकुम(मा)रो, केवलि पवयणि गाया रे ॥१२॥ दढपहारि महातवसी सीधो, कूरगडु चउ खवगा रे । पनरससयां तावस मुणि केवल, गोयम बोहिअ सिवगा रे ॥९३॥ प्रणमह तं सिवराय रिसीवर, नमीइं दंसणभद्दा रे । मेतारज अ इलाईअपुत्तो, केवलणाणसमुद्दा रे ॥१४॥ केवलि इंदनाग मुणि भगवति, मृगापूत सिवपत्ता रे । धर्मरुची महापउमो मुनि वर, महासुक्कि सुर पत्ता रे ॥९५।। गाहा उवसम-विवेग-संवर-पयचिंतणवज्जदलियपावगिरि । सोढुवसग्गो पत्तो, चिलाइपुत्तो सहस्सारे ॥९६॥ (१७) ढाल-गांठडी तेतलीसुत मुनि केवली, जितशत्रु मुनीस रे । उदगबुद्धि सुधी धीनिधी, तस चरण नमीसि रे ॥९७॥ अद्दकुमारो गयबंधणो, तहा पुत्त पेढाल रे । श्रीसुजातो मुनि केवली, सुदंसण व्रत पाल रे ॥९८॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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