Book Title: Anusandhan 1999 00 SrNo 15
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 65
________________ अनुसंधान - १५• 60 1 सेतुंजगिरि सिरि शुकमुनी, करी अणसणि सीधो रे, सीधो रे । तिहां सेलगमुनि शत पांचसूं रे ॥७५॥ सेलगत पडिबुद्धो रे, मुनि तिजीअ सरीरो सीधो रे, सीधी रे ते शुभध्यानि विमलाचलिई ॥७६॥ ऊजलगिरि सुरपति नम्यो, बहुवरिससयाइ तवसी रे, मुवसी रे । ते सारण केवल प्रणमीइ रे ॥७७॥ हणिओ पणि दुर्योधनि, पण पंडवि पणि थुणिउ रे, सुणिउ रे । दमयंत मुणी जगि सो नमो रे ॥७८॥ रामसुर कुंजवालुओ, सो बारवतीमां बलतो रे, [बलतो रे] । कहई चरमशरीरि हूं कह्यो रे ॥ ७९ ॥ उपाडी सुरि आणीओ स ( स ) रि नेमि तणे ते पासिइ रे, वाम्यो रे । सो संयमि केवलसिरि वड्यो ए ॥८०॥ पंच वि ते मुणि पंडवा सूणी नेमि तणूं निर्वाणूं रे, जाणू रे । ते बहु मुनिस्यूं मूगति गया रे ॥ ८१ ॥ (१५) ढाल ( पियारु ए लयदिय महम सिवराज ) संमिलिआ केसी - गोयम गणहर दोइ । सावत्थी नगरमां अंबर, कौतक बहु सुर जोइ ॥८२॥ सोल सहस मुनि दस गणधरस्यूं, प्रणमूं अ पासजिणंद तस पावलि सुअ चउनाणी, केसिअ कुमर मुणिंद ॥ ८३ ॥ जेणि प्रतिबोध्यो राय पएसी, राजपसेणिअ साखि । वीर तणूं शासन पडिवजिऊ, उत्तराध्ययन इम भाख ॥८४॥ कालावेसिअ मुनिवर नमिओ, लोकपालि सुर च्यारि । पादोपगमनि खाइ सीआली, मुंगिले गिरि मनि धारि ॥८५॥ कालिअपुत्तं मेहलिथेरं, आणंदरक्खिअथेरा । ए सवि पासावच्चिअथेरा, नमि जस नहीं भव फेरा ॥ ८६ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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